पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६०१

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२-- ५३२ ] ४-चुल्लवग्ग [ १०५३ '०अनुमति देता हूँ आवसथ-चीवर 'की।" 65 --(आवसथ-चीवर) खनसे सन जाता था 10-- अनुमति देता हूँ आणि-चोळ (=लोहू-सोग्य) की।" 66 ३--आणि-चोळक गिर जाता था 10-- "० अनुमति देता हूँ, मूतसे बाँधकर उसमें बाँधनेकी ।" 67 ४--सूत टूट जाता था।-- "० अनुमति देता हूँ ऐंठे (संवेल्लिय) कटि-मूत्रकी।" 68 ५--उस समय पड्वर्गीया भिक्षुणियाँ सर्वदा ही कटि-सूत्र धारण करनी थीं । लोग हंगन ० होने थे-जैसे कामभोगिनी गृहस्थ (-स्त्रियाँ)! "० भिक्षुणियोंको सर्वदा कटिसूत्र नहीं धारण करना चाहिये, दुक्कटल। अनुमति देता हूँ ऋतुमतीको कटि-सूत्रकी।” 69 द्वितीय भाणवार (समाप्त) ॥२॥ ! (३) उपसम्पदाके लिये शारीरिक दोपका ख्याल रखना १--उस समय उपसंपदा प्राप्त (भिक्षुणियाँ) में देखी जाती थीं—निमित्त (स्त्री चिन्ह) रहित भी, निमित्तमात्रा (=हिंजडिन) भी, आलोहिता' भी, ध्रुवलोहिता' भी, ध्रुवचोळा' भी, पग्घरन्ती रे भी, शिखरिणी भी, स्त्रीपंडक (=हिंजळिन) भी, द्विपुरुपिका भी, सम्भिन्न भी, (स्त्री पुरुष) दोनोंके लक्षणवाली भी। भगवान्से यह वात कही।-- "० अनुमति देता हूँ, उपसम्पदा देते वक्त चौबीस अन्त रा यि क (=विघ्नकारक) धमों (=वातोंके) पूछनेकी। 70 "और ऐसे पूछना चाहिये-३ (१) तू निमित्त-रहित तो नहीं है ? (२) निमित्त-मात्र० ? (३) आलोहिता० ? (४) ध्रुवलोहिता०? (५) ध्रुवचोळा०? (६) पग्घरन्ती० ? (७) शिखरिणी,०? (८) स्त्री-पंडक० ? (९) द्वेपुरुषिक० ? (१०) सम्भिन्ना० ? (११) दोनों लक्षणवाली o? क्या तुझे ऐसी बीमारी है, जैसे कि (१२) कोढ़; (१३) गंड (=एक प्रकारका बुरा फोळा); गंड (=एक प्रकारका फोळा); (१४) किलास (एक प्रकारका बुरा चर्म रोग); (१५) शोथ ; (१६) मृगी ? (१७) तू मनुष्य है ? (१८) तू स्त्री है ? (१९) तू स्वतंत्र (=अदासी) है ; (२०) तू उऋण है ? (२१)तू राज-भटी (=राजाकी सैनिक स्त्री) तो नहीं है ? (२२) तुझे मात, पिता और पतिने अनुमति दी है (भिक्षुणी वननेकी)? (२३) तू पूरे वीस वर्षकी की है ? (२४) तेरे पास पात्र- चीवर (संख्यामें) पूरे हैं ? तेरा क्या नाम है ? तेरी प्रवर्तिनी (गुरु) का क्या नाम है ?" २--उस समय भिक्षु भिक्षुणियोंके अन्त रा यि क धर्मोको पूछते थे । उपसंपदा चाहनेवाली लजाती थीं, चुप हो जाती थीं, उत्तर नहीं दे सकती थीं, । भगवान्से यह बात कही।- '० अनुमति देता हूँ, (पहिले) एक (भिक्षुणी-संघ) में उपसंपन्न हुई, (अन्तरायिक दोपोंसे) शुद्ध को (फिर) भिक्षु-संघमें उपसंपदा देनेकी।" 71 अनु शा स न--उस समय अनुशासन न किये ही उपसंपदा चाहनेवालीसे भिक्षु लोग ( तेरह ) विघ्नकारक बातोंको पूछते थे । उपसंपदा चाहनेवाली चुप हो जाती थीं, मूक हो जाती २ ऋतुविकारवाली स्त्रियोंकी संज्ञा । "ऋतुकालके उपयोगके लिये कपळा । मिलाओ महावग्ग १९४६ (पृष्ठ १३२)।