पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

IO- O ५३६ ] ४-चुल्लबग्ग [ १०६५।८ प्रवारणा करनेके लिये इस नामवाली भिक्षुणीको चुन रहा है, जिस आर्याको पसंद हो, वह चुप रहे; जिस आर्याको पसंद न हो वह बोले ।' "(२) दूसरी बार भी, आर्या संघ ! मेरी सुने~० | "(३) 'तीसरी बार भी, आर्या संघ ! मेरी सुने- "ग. धा र णा---'संघने भिक्षुणी-संघकी ओरसे भिक्षु-रांधारे प्रबारणा करने के लिये इस नामवाली भिक्षुणीको चुन लिया। संघको पसंद है, इसलिये त्रुप है-ऐसा मै इसे धारण करती हैं।" वह चुनी गई (=सम्मत) भिक्षुणी भिक्षुणी-संघको (साथ) ले भिक्षु संवके पास जा, उत्तरा- संगको एक कंधेपर कर भिक्षुओंके चरणों में बन्दनाकर, उकळू बैट हाथ जोळ ऐसे कहे- (१) "आर्यो ! भिक्षुणी-संघ देखे, सुने, और शंका किये (सभी दोपोंके लिये) भिक्षु-संघके पास प्रवारणा करता है। आर्यो ! कृपा करके भिक्षु-संघ भिक्षुणी-संघको (उसके दोष) कहे, देखनेपर (वह उसका) प्रतिकार करेगा। “(२) दूसरी बार भी, आर्यो ! भिक्षुणी-संघ देखे० । "(३) तीसरी बार भी, आर्यो! भिक्षुणी-संघ देखे० ।" (७) उपोसथ स्थगित करना उस समय भिक्षुणियाँ भिक्षुओंके उपोसथको स्थगित करती थीं, प्रवारणा स्थगित करती थीं, बात मारती (=सवचनीय करती) थीं, अनु वा द (=निन्दा) प्रस्थापित करती थीं, अवकाश करवाती थी, दोषारोप करती थीं, स्मरण दिलाती थीं भिक्षुणियोंका भिक्षुओंका उपोसथ स्थगित नहीं करना चाहिये (उनका) स्थगित किया न स्थगित किया होगा, स्थगित करनेवालीको दुक्कटका दोप होगा। प्रवारणा स्थगित नहीं करनी चाहिये०, वात नहीं मारनी चाहिये०, अनुवाद प्रस्थापित नहीं करना चाहिये०, अवकाश नहीं करवाना चाहिये०, दोषरोप नहीं करना चाहिये०, स्मरण नहीं दिलाना चाहिये, स्मरण दिलाया भी न-स्मरण- दिलाया होगा, स्मरण दिल को दुक्कटका दोप होगा।" 84 उस समय भिक्षु भिक्षुणियोंके उपोसथको स्थगित करते थे,०, स्मरण दिलाते थे ।- "० अनुमति देता हूँ, भिक्षुओंको भिक्षुणियोंके उपोसथको स्थगित करनेकी, स्थगित किया ठीक स्थगित किया (समझा) जायेगा, और स्थगित करनेवालेको दोप नहीं होगा; ० स्मरण दिलानेकी, स्मरण दिलाया ठीकसे स्मरण दिलाया (समझा) जायेगा, और स्मरण दिलानेवालेको दोप नहीं होगा।"85 (८) सवारीके नियम १-~-उस समय पड् वर्गी या भिक्षुणियाँ स्त्रीयुक्त दूसरे पुरुपवाले, पुरुपयुक्त दूसरी स्त्रीवाले • यान (=सवारी)से जाती थीं। लोग हैरान ० होते थे---जैसे गंगाका मेला (=गंगामहिया) । भगवानसे यह बात कही-- ० भिक्षुणीको यानसे नहीं जाना चाहिये, जो जाये उसे धर्मानुसार (दंड) करना चाहिये ।' 86 २-० एक भिक्षुणी वीमार थी, पैरसे नहीं चल सकती थी 10- अनुमति देता हूँ, बीमारको यानकी।" 87 तब भिक्षुणियोंको यह हुआ-क्या स्त्री-युक्त (यान) की या पुरुप-युक्त (यान) की ? भगवान्से यह बात कही। अनुमति देता हूँ, स्त्री-युक्त, पुरुष-युक्त (और) हत्थवट्टक (=हाथसे खींचे) की ।" 88 ३-उस समय एक भिक्षुणीको यानके उद्घात (=झटका) से बहुत अधिक कप्ट हुआ ।- - 14 14 O (1 o