पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

0 जा १०६६।१ ] अरण्यवासका निषेध [ ५३७ अनुमति देता हूँ, शिविका, (और) पाटंकी (=पालकी) की ।" 89 (९) दूत भेजकर उपसम्पदा १--उस समय अड्ट का सी ( = आब्य-काशी, काशी देशकी धनिक ) गणिका भिक्षुणियोंमें प्रजित हुई थी। वह भगवानके पास जा उपसम्पदा पानेकी इच्छासे श्रा व स्ती जाना चाहती थी। बदमाशों ( धूर्ती) ने सुना-आ ट्य का शी गणिका श्रावस्ती जाना चाहती है। वह मार्गमें लगे आत्यकाशी गणिकाने सुना–मार्गमें बदमाश लगे हैं । उसने भगवान्के पास दूत भेजा-'मैं उपसम्पदा लेना चाहती हूँ, मुझे क्या करना चाहिये ?' तब भगवान्ने इसी संबंध इसी प्रकरण में धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ, दूत द्वारा उपसम्पदा देनेकी ।" १० २-भिक्षु-दूत भेजकर उपसम्पदा करते थे ।--- "भिक्षुओ! भिक्षु-दूत भेजकर उपसम्पदा नहीं देनी चाहिये, ० दुक्कट ० ।" 91 ३-शिक्षमाणा-दूत भेजकर० । ४-श्रामणेर-दूत भेजकर ० । ५-धामणेरी-दूत भेजकर ० । ६-मूर्ख अजान दूतको भेजकर उपसम्पदा करते थे ।०-- "भिक्षुओ ! मूर्ख अजान दूतको भेजकर उपसम्पदा नहीं करनी चाहिये, ० दुक्कट ० । भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, चतुर समर्थ भिक्षुणीको दूत (वना) भेजकर उपसम्पदा देनेकी । 92 "उस भिक्षुणी-दूतको संघके पास जाकर एक कंधेपर उत्तरासंग कर भिक्षुओंके चरणोंमें वन्दना कर उकळू वैठ हाथ जोळ ऐसा कहना चाहिये-"(१) आर्यो ! इस नामवाली (भिक्षुणी) की इस नाम- वाली उपसम्पदा चाहनेवाली है । एक ओरसे उपसम्पदा पा चुकी, भिक्षुणी-संघमें (दोषोंसे) शुद्ध है । वह किसी अन्तराय (=विघ्न) से नहीं आ सकती। (वह) इस नामवाली संघसे उपसम्पदा माँगती है। आर्यो! कृपा करके संघ उसका उद्धार करे । “(२) आर्यों ! इस नामवाली० । दूसरी वार भी इस नामवाली संघसे उपसम्पदा माँगती है। "(३) आर्यों ! इस नामवाली० । तीसरी वार भी ० । "तव चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे- "क. ज्ञप्ति० । ख. अनु श्रा व ण । ग. धा र णा० । "उसी समय (समय जाननेके लिये) छाया नापनी चाहिये०१ । ०-इसे तीन निश्रय और आठ अ-करणीय बतलाओ।" ९६-अरण्यवास निषेध, भिक्षुणी-विहारका निर्माण, गर्भिणी प्रव्रजिताकी सन्तानका पालन, दण्डिताको साथिनी देना, दुबारा उपसम्पदा, शौच-स्नान (१) अरण्यवासका निषेध उस समय भिक्षुणियाँ अरण्य (=जंगल) में वास करती थीं ! वदमाश बलात्कार करते थे।-- 'देखो पृष्ठ ५३४ । ६८