पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६०८

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१०६६।९ ] स्नानके नियम [५३९ ग. धा र णा-"संघने इस नामवाली भिक्षुणीकी साथिन होनेके लिये इस नामवाली भिक्षुणीको चुन लिया। संघको पसंद है, इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे धारण करती हूँ।" (५) दुवारा उपसम्पदा १-उस समय एक भिक्षुणी (भिक्षुणीकी) शिक्षाको त्याग गृहस्थ बन गई । वह फिर आकर भिक्षुणियोंसे उपसंपदा माँगने लगी। भगवान्ले यह बात कही ।- • भिक्षुणियोंका (कोई दूसरा) शिक्षाका परित्याग नहीं, जभी उसने वेप छोळा, उसी समय वह अ-भिक्षुणी हो गई।" 102 २-उस समय एक भिक्षुणी अपने आवास (=आश्रम) को छोळ तीर्थायतन (दूसरे मत- वालोंके स्थानपर) चली गई। उसने फिर लौट आ भिक्षुणियोंसे उपसंपदा माँगी।-- • जो भिक्षुणी अपने आवासको छोड़ तीर्थायतनमें चली गई, फिर आनेपर उसे उपसम्पदा 11 न देनी चाहिये।" 103 11 o 0 (६) पुरुपों द्वारा अभिवादन केशच्छेदन आदि उस समय भिक्षुणियाँ पुरुपों द्वारा अभिवादन, केशच्छेदन, नख-च्छेदन, घावकी दवा करानेमें संकोच कर नहीं सेवन करती थीं।०- अनुमति देता हूँ, सेवन करनेकी।" 104 (७) वैठने के नियम उस समय भिक्षुणियाँ पलथी मारकर बैठे पाणि (=एळी) के स्पर्शका स्वाद लेती थीं।०- भिक्षुगियोंको पलथी मारकर बैठे पाणिके स्पर्शका स्वाद नहीं लेना चाहिये, ० दुक्कट०।" IOS उस समय एक भिक्षणी बीमार थी, पलथी मारकर बैठे विना उसे आराम न मिलता था।- • अनुमति देता हूँ, वीमार भिक्षुणीको आधी पलथीकी।" 106 (८) पाखानेके नियम उस समय भिक्षुणियाँ पाखाने में शौच जाती थीं, पड्वर्गीया भिक्षुणियाँ वहीं गर्भ गिराती थीं।०- भिणियोंको पाखानेगें शौच नहीं जाना चाहिये, • दुक्कट ० । अनुमति देता हूँ, नीचे (भूमिपर) खुले और ऊपरसे छाये (स्थानमे) शौच जानेकी।" 107 (९) स्नानके नियम १-उस समय भिक्षुणियाँ (स्नानके सुगंधित) चूर्णसे नहाती थी। लोग हैरान० होते थे---- o जैन कामभोगिनी स्त्रियाँ ।०- 16 o O भिक्षुणीको चूर्णसे नहीं नहाना चाहिये, ०दुक्कट ० । अनुमति देता हूँ कुक्कुस मिट्टीकी ।" 108 २-उन समय भिक्षुणियाँ वासित (=सुगंधित) मिट्टीसे नहाती थीं। लोग हैरान होते थे-जैसे कामभोगिनी गृहस्थ स्त्रियाँ ! - भिक्षुणीको वासित मिट्टीसे नहीं नहाना चाहिये, दुक्कट० । अनुमति देता हूँ स्वाभाविक O मिट्टीकी ।" 109 11 ३-उस समय भिक्षुणियोंने जन्ताघरमे नहाते वक्त कोलाहल किया।- भिक्षुणियोंको जन्ताघरमें नहीं नहाना चाहिये, ०दुक्कट० ४-उस समय भिमणि भारती थीं और धाराके स्पर्शका स्वाद लेती थीं।०- o "110