पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६०९

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II o 17 O II2 ५४० ] ४-चुल्लवग्ग [ १०६६।९ भिक्षुणियोंको उलटी धार नहीं नहाना चाहिये, दुक्कट० ।" III ५----उस समय भिक्षुणियाँ वेघाट नहाती थीं, बदमाश बलात्कार करते थे 10- भिक्षुणियोंको वेघाट नहीं नहाना चाहिये, ०दुवकट० । ६-उस समय भिक्षुणियाँ मर्दाने घाटपर नहाती थीं, लोग हैरान होते थे-जैसे कामभोगिनी गृहस्थ (स्त्रियाँ) ! भिक्षुणियोंको मर्दाने घाटपर नहीं नहाना चाहिये, जो नहाये उसे दुवकटका दोप हो। भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ महिलातीर्थ (जनाने घाट) पर नहानेकी।" तृतीय भाणवार समाप्त ॥ ३ ॥ दशम भिक्खुनी-क्खन्धक समाप्त ॥१०॥ " o 113