पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६१०

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११--पंचशतिका-स्कंधक १-प्रथम संगीतिकी कार्यवाही । २–निर्वाणके समय आनंदकी भूल । ३--आयुष्मान् पुराण- का संगीति पाठकी पाबंदीसे इन्कार । ४–छन्नको ब्रह्मदंड और उदयनको उपदेश । ७१-प्रथम संगीतिकी कार्यवाही १-राजगृह तव आयुष्मान् म हा का श्य प ने भिक्षुओंको संबोधित किया। आवसो ! एक समय में पाँच सौ भिक्षुओंके साथ पा वा और कु सी ना रा के बीच रास्तेमें था । तव आवुसो ! मार्गसे हटकर मैं एक वृक्षके नीचे बैठा । उस समय एक आ जी व क कुसीनारासे मंदारका पुष्प लेकर पावाके रास्ते में जारहा था । आवुसो ! मैंने दूरसे ही आजीवकको आते देखा । देखकर उस आजीवकसे यह कहा -"आवुस ! हमारे शास्ताको जानते हो?" "हाँ आवुसो ! जानता हूँ, आज सप्ताह हुआ, श्रमण गौ त म परिनिर्वाणको प्राप्त हुआ । मैंने यह मन्दारपुष्प वहींसे लिया है ।" आवुसो ! वहाँ जो भिक्षु अवीत-राग (वैराग्य वाले नहीं) थे; (उनमें) कोई-कोई वाँह पकळकर रोते थे 'कट पेळके सदृश गिरते थे, लोटते थे—'भग- वान् वहुत जल्दी परिनिर्वाणको प्राप्त हो गये' । किन्तु जो वीतराग भिक्षु थे, वह स्मृति-सम्प्रजन्यके साथ स्वीकार (=सहन) करते थे--संस्कार (=कृत वस्तुयें) अनित्य है, वह कहाँ मिलेगा ० ।' 'उस समय आवुसो ! सुभद्र नामक एक वृद्ध प्रगजित उस परिषद्मे बैठा था । तब वृद्ध प्रवजित सुभद्रने उन भिक्षुओंको यह कहा--'मत आवुसो ! मत शोक करो, मत रोओ। हम सुयुक्त हो गये उस महाश्रमणसे पीळित रहा करते थे । यह तुम्हें. विहित नहीं है । अव हम जो चाहेंगे सो करेंगे, जो नहीं चाहेंगे उसे न करेंगे' । “अच्छा हो आवुसो ! हम धर्म और विनय का संगान (=नाथ पाठ) करें, सामने अधर्म प्रकट हो रहा है, धर्म हटाया जा रहा है, अविनय प्रकट हो रहा है, विनय हटाया जा रहा है । अधर्मवादी वलवान् हो रहे हैं, धर्मवादी दुर्वल हो रहे हैं, • निनय- वादी हीन हो रहे हैं।" "तो भन्ते ! (आप) स्थविर भिक्षुओंको चुनें ।" तव आयुप्मान् महा का श्य प ने एक कम पाँचनी अर्हत् चुने । भिक्षुओंने आयुप्मान् महाकाश्यपसे यह कहा- "भन्ते ! यह आनन्द यद्यपि शैक्ष्य (अन्-अर्हत्) हैं, (तो भी) छंद (राग) द्वेष, मोह, भय, अगनि (=बुरे मार्ग) पर जानेके अयोग्य हैं । इन्होंने भगवान्के पास बहुत धर्म (=सूत्र) और विनय प्राप्त किया है, इसलिये भन्ते ! स्थविर आयुप्मान्को भी चुन तव आयुप्मान् महाकाश्यपने आयुष्मान् आनन्दको भी चुन लिया। तव स्थविर भिक्षुओंको यह हुआ-'कहाँ हम धर्म और विनयका संगायन करें ?' तव स्थविर भिक्षुओंको यह हुआ- मिलाओ महापरिनिव्वाणसुत्त ( दीघनिकाय ) भी। ११९१ ] [ ५४१