पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६११

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५४२ ] ४-चुल्लवग्ग [ ११०१२ (१) राजगृहमें संगीति करनेका ठहराव "राजगृह महागोचर (-समीपमें बहुत वस्तीवाला) बहुत शयनासन (वास-स्थान) वाला है, क्यों न राजगृहमें वर्षावास करते हम धर्म और विनयका संगायन करें। (लेकिन) दूसरे भिक्षु राजगृह मत जावें" । तव आयुष्मान् महाकाश्यपने संघको ज्ञापित किया- ज्ञप्ति-"आवुसो! संघ सुने, यदि संघको पसन्द है, तो संघ इन पाँचसी भिक्षुओंको राजगृहमें वर्षा- वास करते धर्म और विनय संगायन करनेकी संमति दे । और दूसरे भिक्षुओंको राजगृहमें नहीं बसने की।" यह ज्ञप्ति (=सूचना) है। अनु श्रा व ण--'भन्ते ! संघ सुने, यदि संघको पसन्द है० । जिस आयुप्मान्को इन पाँचसौ भिक्षुओंका, ० संगायन करना, और दूसरे भिक्षुओंका राजगृहमें वर्षावास न करना पसंदहो, वह चुप रहे; जिसको नहीं पसंदहो, वह बोले । "दूसरी बार भी। "तीसरी बार भी० । धा र णा–“संघइन पाँचसौ भिक्षुओंके० तथा दूसरे भिक्षुओंके राजगृहमें वास न करनेसे सहमत है, संघको पसंद है, इसलिये चुप है '-यह धारण करता हूँ।" तव स्थविर भिक्षु ! धर्म और विनयके संगायन करनेके लिये राजगृह गये । तब स्थविर भिक्षुओंको हुआ- 'आवुसो ! भगवान्ने टूटे फूटेकी मरम्मत करनेको कहा है। अच्छा आवुसो ! हम प्रथम मासमें टूटे फूटेकी मरम्मत करें, दूसरे मासमें एकत्रित हो धर्म और विनयका संगायन करें।' तव स्थविर भिक्षुओंने प्रथम मासमें टूटे फूटेकी मरम्मत की। आयुष्मान् आ नन्द ने—'बैठक (=सन्निपात) होगी, यह मेरे लिये उचित नहीं, कि मैं शैक्ष्य रहते ही बैठकमें जाऊँ ( सोच ) बहुत रात तक काय-स्मृतिमें बिताकर, रातके भिनसारको लेटनेकी इच्छासे शरीरको फैलाया, भूमिसे पैर उठ गये, और शिर तकियापर न पहुँच सका। इसी बीचमें चित्त आस्रवों (=चित्तमलों) से अलग हो, मुक्त होगया । तब आयुष्मान् आनन्द अर्हत् होकर ही वैठकमें गये। (२) उपालिसे विनय पूछना आयुष्मान् म हा का श्य प ने संघको ज्ञापित किया- "आवुसो ! संघ सुने, यदि संघको पसंद है तो मै उपालिसे विनय पूछू ?" आयुष्मान् उपालिने भी संघको ज्ञापित किया- "भन्ते ! संघ सुने यदि संघको पसंद है, मैं आयुष्मान् महाकाश्यपसे पूछे गये विनय- का उत्तर दूं ?" अब आयुष्मान् महाकाश्यपने आयुष्मान् उपालिको कहा- "आवुस ! उपालि ! २प्रथम-पाराजिका कहाँ प्रज्ञप्त की गई ?" "राजगृहमें भन्ते ! "किसको लेकर ?” 'सु दिन्न कलन्द-पुत्तको लेकर।" "किस बातमें ?" "मैथुन-धर्ममें ।" ! १ उस संघमें सभी महाकाश्यपसे पीछेके बने भिक्षु थे; इसलिये 'आवस' कहा। यहाँ उस संघमें महाकाश्यप उपालिसे बड़े थे, इसलिये 'भन्ते' कहा।