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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६१२

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प्रथम संगीति ११०११३ ] [ ५४३ तव आयुष्मान् महाकाश्यपने आयुष्मान् उ पा लि को प्रथम पाराजिकाकी वस्तु (=कथा) भी पूछी, निदान ( =कारण ) भी पूछा, पुद्गल ( =व्यक्ति ) भी पूछा, प्रज्ञप्ति ( =विधान ) भी पूछी, अनुप्रज्ञप्ति (=संवोधन) भी पूछी, आपत्ति (=दोष-दंड ) भी पूछी, अन्-आपत्ति भी पूछी। "आवुस उपालि ! १द्वितीय-पाराजिका कहाँ प्रज्ञापित हुई ?” “राजगृहमें भन्ते !" "किसको लेकर ?” “धनिय कुंभकार-पुत्रको।" "किस वस्तुमें ?" अदत्तादान (चोरी ) में।" तब आयुष्मान् महाकाश्यपने आयुष्मान् उपालिको द्वितीय पाराजिकाकी वस्तु (=कथा) भी पूछी, निदान भी० अनापत्ति भी पूछी ।- 'आवुस उपाली ! 'तृतीय पाराजिका कहाँ प्रज्ञापित हुई ?" "वैशालिमें, भन्ते ।" "किसको लेकर?" "बहुतसे भिक्षुओंको लेकर ।" "किस वस्तुमें ?" "मनुष्य-विग्रह (-नर-हत्या) के विषयमें ।" तव आयुष्मान् महाकाश्यपने० ।- "आवुस उपालि ! चतुर्थ पाराजिका कहाँ प्रज्ञापित हुई ?" "वैशालीमें भन्ते !" "किसको लेकर ?” “वग्गु-मुदा-तीरवासी भिक्षुओंको लेकर।" "किस वस्तुमें ?" "उत्तर-मनुष्य-धर्म (=दिव्य-शक्ति ) में।" तव आयुष्मान् काश्यपने० । इसी प्रकारसे दोनों ( भिक्षु, भिक्षुणी ) के विनयोंको पूछा। आयुष्मान् उपालि पूछेका उत्तर देते थे। (३) आनन्दसे सूत्र पूछना तव आयुष्मान् महाकाश्यपने संघको ज्ञापित किया- "आवसो ! संघ मुझे सुने । यदि संघको पसन्द हो, तो मैं आयुष्मान् आनन्दको धर्म ( =सूत्र ) पूर्वी ?" तव आयुष्मान् आ नन्द ने संघको ज्ञापित किया- "भन्ते ! संघ मुझे सुने । पदि संघको पसन्द हो, तो मैं आयुष्मान् महाकाश्यपसे पूछे गये धर्मका उत्तर दूं ?" तव आयुष्मान् महाकाश्यपने आयुष्मान् आनन्दसे कहा- "आवुस आनन्द ! 'ब्रह्म जा ल'३ ( सूत्र )को कहाँ भापित किया ?" "रा ज गृह और ना ल न्दा के वीचमें, अम्ब ल ट्ठि का के राजागारमें।" "किसको लेकर ?" 'मृप्रिय परिव्राजक और ब्रह्मदत्त माणवकको लेकर।" तव आयुप्मान् महाकाश्यपने 'ब्रह्मजाल'के निदानको भी पूछा, पुद्गलको भी पूछा । "आवुन आनन्द ! *सा मञ (धामण्य) फल'को कहाँ भापित किया ?" "भन्ते ! राजगृहमें जी व क म्ब-बनमें ।" "किसके साथ?" 'देखो तुचर्या पृष्ठ ३०८ । वीपनिकायका प्रथम सूत्र। देखो बुद्धचर्या पृष्ठ ३१२ । देखो दीघनिकायका द्वितीय सूत्र । ।