पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६१३

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५४४ ] ४-चुल्लवग्ग [ ११९२१२ "अ जा त-श त्रु वैदेहिपुत्र के साथ ।" तब आयुष्मान् महाकाश्यपने 'सामन-फल'-सुत्तके निदानको भी पूछा, पुद्गलको भी पूछा । इसी प्रकारसे पाँचों निकायोंको पूछा; पूछे पूछेका आयुप्मान् आनन्दने उत्तर दिया । c - 5२-निर्वाणके समय आनन्दकी भूल (१) छोटे छोटे भिक्षु-नियमोंका नाम न पूछना तब आयुष्मान् आनन्दने स्थविर-भिक्षुओंसे कहा- "भन्ते ! भगवान्ने परिनिर्वाणके समय ऐसा कहा-'आनन्द ! इच्छा होनेपर संघ मेरे न रहनेके बाद, क्षुद्र-अनुक्षुद्र (-छोटे छोटे) शिक्षापदों (=भिक्षु-नियमों) को हटा दे।" "आवुस आनन्द ! तूने भगवान्को पूछा ?'-'भन्ते ! किन क्षुद्र-अनुक्षुद्र शिक्षापदों को?" "भन्ते ! मैंने भगवान्से नहीं पूछा।" किन्हीं किन्हीं स्थविरोंने कहा-चार पाराजिकाओंको छोळकर वाकी शिक्षापद क्षुद्र-अनुक्षुद्र है । किन्हीं किन्हीं स्थविरोंने कहा—चार पाराजिकायें, और तेरह संघादिशेपोंको छोळकर, बाकी। ०चार पाराजिकायें, और तेरह संघादिशेषों, और दो अनियतोंको छोळकर बाकी० । ०पाराजिका० संघादिशेष० अनियत और तीस नैसर्गिक-प्रायश्चित्तिकोंको छोळकर० । ०पाराजिका० संघादिशेप० अनियत नैसर्गिक प्रायश्चित्तिक और वानवे प्रायश्चित्तिकोंको छोळकर० । ० ० और चार प्राति-देश- नीयोंको छोळकर० (२) किसी भी भिक्षु-नियमको न छोळाजाय तव आयुष्मान् महाकाश्यपने संघको ज्ञापित किया- ज्ञप्ति-"आवुसो ! संघ मुझे सुने । हमारे शिक्षापद गृही-गत भी है (-गृहस्थ भी जानते हैं)-'यह तुम शाक्यपुत्रीय श्रमणोंको विहित (=कल्प्य) है, यह नहीं विहित है।' यदि हम क्षुद्र-अनुक्षुद्र शिक्षापदोंको हटायेंगे, तो कहनेवाले होंगे-'श्रमण गौतमने धूयेंके कालिख जैसा शिक्षापद प्रज्ञप्त किया, जबतक इनका शास्ता रहा, तब तक यह शिक्षापद पालते रहे, जब इनका शास्ता परिनिर्वृत्त हो गया; तब यह शिक्षापदोंको नहीं पालते ।' यदि संघको पसंद हो तो संघ अ-प्रज्ञप्त (=अविहित) को न प्रज्ञापन (=विधान) करे, प्रज्ञप्तका न छेदन करे। प्रज्ञप्तिके अनुसार शिक्षापदोंमें वर्ते यह ज्ञप्ति (सूचना) है- अनु श्रा व ण-"आवुसो ! संघ सुने० प्रज्ञप्तिके अनुसार शिक्षापदोंमें वर्ते । जिस आयुप्मान्को अ-प्रज्ञप्तका न प्रज्ञापन, प्रज्ञप्तका न छेदन, प्रज्ञप्तिके अनुसार शिक्षापदोंको ग्रहणकर वर्तना पसन्द हो, वह चुप रहे, जिसको नहीं पसन्द हो वह वोले। ० धा र ण:- "संघ न अप्रज्ञप्तका प्रज्ञापन करता है, न प्रज्ञप्तका छेदन करता है । प्रज्ञप्तिके अनुसार ही शिक्षापदोंको ग्रहणकर वर्तता है-(यह) संघको पसन्द है, इसलिये मौन है-ऐसा धारण करता हूँ।" तव स्थविर भिक्षुओंने आयुष्मान् आ न न्द से कहा- देखो भिक्खुपातिमोक्ख (पृष्ठ ८-२६) ।