पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६२६

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O १२३।३ ] संगीतिकी कार्यवाही [ ५५७ "विकाल भोजन-विषयक 'पाचित्तिय'१की।' "भन्ते ! संघ मुझे सुने—यह द्वितीय वस्तु संघने निर्णय किया ।। यह दूसरी शलाका छोळता हूँ।" (३) "भन्ते ! 'नामान्तर-कल्प' विहित है ? ०।०। "आवुस नहीं विहित है।" "कहाँ निषिद्ध किया ?" "श्रा व स्ती में 'सुत्तविभंग' में।" "क्या आपत्ति होती है ?" "अतिरिक्त भोजन विषयक 'पाचित्तिय' ।" "भन्ते ! संघ मुझे सुने- ।" ( ४ ) "भन्ते ! 'आवास-कल्प' विहित है ?" ०1० । "आवुस ! नहीं विहित है।" "कहाँ निषिद्ध किया ?” “राजगृहमें 'उपोसथ-संयुत्त' में।" "क्या आपत्ति होती है ?" “विनय (=भिक्षु-नियम) के अतिक्रमणसे दुक्कट (=दुष्कृत)।" "भन्ते ! संघ मुझे सुने ।" (५ ) “भन्ते ! 'अनुमति-कल्प' विहित है ?" 101 "आवुस ! नहीं विहित है।" "कहाँ निषेध किया ?" "चा म्पे य क वि न य-वस्तु में ।" "क्या आपत्ति होती है ?" "विनय-अतिक्रमणसे 'दुक्कट' ।" "भन्ते ! संघ मुझे सुने ।" (६ ) "भन्ते ! 'आचीर्ण-कल्प' विहित है ?"0101 "आवुस ! कोई कोई आचीर्ण-कल्प विहित है, कोई कोई नहीं।" "भन्ते ! संघ मुझे सुने ।" (७ ) "भन्ते 'अमथित-कल्प' विहित है ?" ०1० । 'आवस ! नहीं विहित है।" "कहाँ निषेध किया ?" "श्रा व स्ती में 'सुत्त-वि भंग' में।" "क्या आपत्ति · · है ?" ."अतिरिक्त भोजन करने में 'पाचित्तिय' ।" "भन्ते ! नंघ मुझे मुने० ।" 'वहीं ९५५३७ (पृष्ठ २६)। वहीं ६५।३५ (पृष्ट २५) । महादग्ण उपोसथ-सन्धक (पृष्ठ १३८)। चाम्पेय्यम्कन्धक (महादग्ग ९) चम्पेयविनयवस्तु है । सर्वास्तिवादी विनय-पिटको महा- दग्ग और पल्लवनको दिनयमहावस्तु और विनयक्षुद्रकदस्तु कहा है ।

  • निवजु-पातिनोदस १५:३७ (पृष्ठ २६) ।