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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६३

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२० ] भिवखु-पातिमोक्ख [ ६४।१९-२३ १९-जो कोई भिक्षु नाना प्रकारके रूपयों ( = रूपिय =सिक्का ) का व्यवहार' करे ! उसको निस्सग्गिय पाचित्तिय है। (४) क्रय-विक्रय २०-जो कोई भिक्षु नाना प्रकारके खरीदने बेचने के कामको करे उसको निस्सग्गिय पावित्तिय हैं। ( इति ) कोसिय बग ॥२॥ (५) पात्र २१–फ़ाज़िल ( भिक्षा ) पात्रको अधिकसे अधिक दस दिन तक रखना चाहिये । इसका अतिक्रमण करनेपर निस्सग्गिय पाचित्तिय है। २२-जो कोई भिक्षु पाँचसे कम ( जगह ) टाँके ( छेद वाले ) पात्र से दूसरे नये पात्रको बदले उसे निस्सग्गिय पाचित्तिय है । उस मिक्षुको वह पात्र भिक्षु-परिषद्को दे देना चाहिये । और जो ( पात्र ) भिनु-परिपद्का अन्तिम पात्र है उस भिक्षुको ( यह कह कर ) देना चाहिये भिक्षु ! यह तेरे लिये पात्र है । जव तक न टूटे तब तक ( इसे ) धारण करना ।—यह यहाँ उचित (प्रतिकार ) है। (६) भैषज्य २३-भिक्षुको घो, मक्खन, तेल, मधु, खाँड़ (...) आदि रोगी भिक्षुओंके सेवन करने लायक़ पथ्य (= भैषज्य )को ग्रहण कर अधिकसे अधिक सप्ताह भर रखकर भोग कर लेना चाहिये । इसका अतिक्रमण करनेपर उसे निस्सग्गिय-पाचित्तिय है। १ महा अशांतिके कारण ( उस समय ) एक ही भिक्षुको महानिर्देस ( ग्रंथ ) कंठस्थ था, तब चारों निकायोंके स्मरण करनेवाले तिष्य ( = तिस्स ) स्थविरके उपाध्याय महात्रिपिटक स्थविरने महारक्षित स्थविरसे कहा-'आवुस ! महारक्षित इस ( भिक्षु )के पाससे महानिदेस को सीख लो' । ( अट्ठकथा ) महासुम्म स्थविरके उपाध्यायका नाम अनुरुद्ध स्थविर था । उन्होंने अपने इस प्रकार के पात्रको घीसे भरकर संघको दिया । त्रिपिटक चूल-नाग स्थविरके शिष्योंके पास भी इस प्रकारका पात्र था ( अट्ठकथा ) ३ आधे आढक भर भात ग्रहण करते थे मगधकी दो नाली चावलका भात ग्रहण करते थे । मगधकी नाली साढ़े बारह पलकी होती है-यह अन्धक-अट्ठकथामें कहा है । सिंहलद्वीप में प्रचलित नाली बड़ी होती है, तमिल ( देश ) की नाली ( अधिक ) छोटी, मगधकी नाली ( मध्यम ) प्रमाणकी होती है । उस मगधकी डेढ़ नालीके बराबर एक सिंहल-नाली होती है- यह महाअट्ठकथामें कहा है। "नाली भर भात= मगधकी नालीभरका भात । प्रस्थभरका भात = मगधकी नालीसे डेढ़ ( = उपड्ढ ) नाली भरका भात ( अट्ठकथा )। ४ उपतिष्य स्थविरसे शिप्योंने पूछा---'भन्ते ! मक्खन, दहीकी गुलिका और छाछ को बूंदे एकट्ठा पकानेमे मिल जानेपर तेज-बर्द्धक, रोग-नागक हैं ? 'हों आवुसो !' स्थविरने 9