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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६४

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3 ६४।२४-२९ ] ४-निस्सग्गिय-पाचित्तिय [ २१ (७) चीवर २४-ग्रीष्म ( ऋतु) के एक मास शेष रह जानेपर भिक्षुको वर्षिकशाटिका' चोवरके लिये यत्न करना चाहिये । ग्रीष्मका आधा मास रह जानेपर पहनना चाहिये । ग्रीष्मके एक मास शेष रहनेसे पहिले यदि वर्पिकशाटिका चीवरकी खोज पड़े और ग्रीष्मके आधा मास शेष रहनेसे पहिले पहिने तो निस्सग्गिय-पाचित्तिय है। २५–जो कोई भिनु ( दूसरे ) भिक्षुको स्वयं चोवर देकर फिर कुपित और नाराज़ हो, छोने या छिनवाये उसे निस्सग्गिय-पाचित्तिय है। २६-जो कोई भिक्षु स्वयं सूत माँगकर कोली (= जुलाहा )से चोवर बुनवाये उसको निस्सग्गिय-पाचित्तिय है। २७–उसी भिक्षुके लिये अज्ञातक गृहस्थ या गृहस्थिनी कोलोसे चीवर बुनवायें और वह भिनु प्रदान करनेसे पहिले हो कोलीके पास जाकर ( यह कह ) चोवरमें हेर फेर कराये-आवुस ! यह चोवर मेरे लिये बुना जा रहा है । इसे लंबा-चौड़ा बनाओ, घना, अच्छी तरह तना, खूब अच्छी तरह वुना, अच्छी तरह मला हुआ और अच्छी तरह छाँटा हुआ बनाओ तो हम भी आयुष्मानोंको कुछ दे देंगे; और नहीं तो कुछ भिक्षा से हो; तो उसे निस्सग्गिय-पाचित्तिय है। २८-कार्तिककी त्रैमासी पूर्णिमाके आनेसे दस दिन पहिलेहो यदि भिक्षुको फाजिल चीवर प्राप्त हो तो ( उसे ) फाजिल समझते हुए भिनुको ग्रहण करना चाहिए । ग्रहणकर चीवर-काल तक रखना चाहिये । उसके बाद यदि रखे तो उसे निस्सग्गिय पाचित्तिय है। २९-वर्षावास करते हुए कार्तिक पूर्णिमा तक शंका-युक्त-भय-सहित, आरण्यक (=वन ) श्राश्रमोंमें रहते हुए भिक्षु चाहे तो तोन चीवरोंमेंसे एक चोवरको रख दे सकता है; यदि उसे उस चीवरके चलेजानेका डर हो । (किन्तु ) उस भिक्षुको अधिकसे अधिक छः रात तक उस चीवरके विना रहना चाहिये । यदि भिक्षुओंकी सम्मतिके विना उससे अधिक ( समय तक चीवरके ) विना रहे तो उसे निस्सग्गिय पाचित्तिय है। 1 5 कहा । महासुन्म स्थविरने कहा-विहित मांसकी चरबी आमिप युक्त भोजनके साथ (ग्रहण की) जा सकती है । और दृसरी ( चीजें ) निरानिप भोजनके साथ किन्तु महापद्म स्थविरने—यह कुछ नहीं-कह ग्यंडन कर कहा-'वातरोगी भिक्षु पंचमूलके कपायसे यवागृ. ( = खिचड़ी )मे भान और सूअरके तेल आदिको डाल पीते हैं, और वह तेज देनेवाली रोगनाशक होती है; ( इसलिये ) वह (ग्रहण की जा ) सकती है । ( अट्ठकथा ) आपाट पूर्णिमा तक ग्रीष्मका अन्तिम मास होता है और वादके प्रतिपद्से कार्तिक पूर्णिमा तक वर्षा । ( अट्टकया ) परमातमें कपड़ोंके जल्दी न सूबने से भिक्षु बरसात भरके लिये लुङ्गीके तौरपर पहनने लायक. एक और चोवर ले सकता है, इस वर्षिकशाटिका कहते हैं ३ आश्विन पूर्णिमाके बादकी प्रतिपदाले कार्तिक पूर्णिमा तकका समय । १