पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६५

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२२ ] भिक्खु-पातिमोक्न [ ६४।३० (८) संघके लाभमें भाँजी मारना ३०-जो कोई भिक्षु संघके लिये प्राप्त वस्तु (=लाभ)को अपने लिये परिवर्तन कराले उसे निस्सग्गिय पाचित्तिय है। (इति) पत्त वग्ग ॥३॥ आयुष्मानो ! तोस निस्सग्गिय पाचित्तिय दोप कह दिये गये । आयुष्मानोंसे पूछता हूँ-क्या (आपलोग ) इनसे शुद्ध हैं ? दूसरी बार भी पूछता हूँ-क्या शुद्ध हैं ? तीसरी बार भी पूछता हूँ-क्या शुद्ध हैं ? अायुष्मान् लोग शुद्ध हैं, इसीलिये चुप है—ऐसा मैं इसे धारण करता हूँ। निस्सग्गिय-पाचित्तिय समाप्त ॥२॥