पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६६

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५-पाचित्तिय (५०-१४१) आयुष्मानो ! यह बानवे पाचित्तिय दोष कहे जाते हैं। (१) भाषण-संबंधी १-जानबूझकर झूठ बोलनेमें पाचित्तिय है। २-श्रोमसवाद (-वचन मारने )में पाचित्तिय है। ३-भिक्षुओंकी चुगली करनेमें पाचित्तिय है। ४-भिक्षुका भिक्षु-भिन्न (=अनुपसंपन्न )को पदोंके क्रमसे धर्म (=बुद्धोपदेश ) बचवानेमें पाचित्तिय है। (२) साथ लेटना ५-जो कोई भिक्षु अनुपसंपन्नके साथ दो तीन रातसे अधिक एकसाथ शय्या रक्खे तो पाचित्तिय है। ६-जो भिक्षु स्त्री के साथ शयन करे उसे पाचित्तिय है। (३) धर्मोपदेश ७-विज्ञ पुरुषको छोड़ जो कोई भिक्षु स्त्रोको पाँच छः वचनोंसे अधिक धर्मका उपदेश दे उसे पाचित्तिय है। (४) दिव्य-शक्ति प्रदर्शन ८-जो कोई भिक्षु अनुपसंपन्नको दिव्य-शक्तिके बारेमें यथार्थ भी कहे उसे पाचित्तिय है। (५) अपराध प्रकाशन ९-जो कोई भिक्षु ( किसी ) भिक्षुके दुट्ठल' अपराधको भिक्षुओंकी सम्मतिके विना अनुपसम्पन्न ( पुरुष )से कहे उसे पाचित्तिय है । (६) जमीन खोदना -जो कोई भिक्षु ज़मीन खोदे या खुदवाये उसे पाचित्तिय है । (इति) मुसावाद वग्ग ॥३॥ १०- चार पाराजिवा और तरह संघादिसेस दोष दुल कहे जाने हैं। ६५-१०] [ २३