पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६७

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. २४ ] भिक्खु-पातिमोक्ख [ ६५।११-२३ (७) वृक्ष काटना ११-भूत-ग्राम (=तृण वृक्ष आदि )के गिरानेमें पाचित्तिय है। (८) संघके पूछनेपर चुप रहना १२-( संघके पूछनेपर ) उत्तर न दे हैरान करनेमें पाचित्तिय है। (6) निंदना १३-निंदा और बदनामी करनेमें पाचित्तिय है। (१०) संघकी चीजमें बेपर्वाही १४–जो कोई भिक्षु संघके मंच, पीढ़ा, विस्तरा, और गद्देको खुली जगहमें बिछा या विछवाकर वहाँसे जाते वक्त उन्हें न उठाता है न उठवाता है, या बिना पूछेही चला जाता है उसे पाचित्तिय है। १५–जो कोई भिक्षु, संघके विहार (=आश्रम ) में विछौना विछाकर या विछ्वा- कर वहाँसे जाते वक्त उसे न उठाता है, न उठवाता है, या बिना पूछेही चला जाता है, उसे पाचित्तिय है। १६-जो कोई भिक्षु, जानकर संघके विहारमें पहिलेसे आये भिक्षुका विना ख्याल किये, यही सोचकर कि दूसरा नहीं ( इस तरह ) आसन लगाये कि जिससे ( पहलेवाले भिक्षुको ) दिक्कत हो और वह चला जाये, तो उसे पाचित्तिय है। १७--जो कोई भिक्षु कुपित और असंतुष्ट हो ( दूसरे ) भिक्षुको संघके विहारसे निकाले या निकलवाये उसे पाचित्तिय है। १८–जो कोई भिक्षु संघके विहारमें ऊपरके कोठेपर पैर धबधवाते हुए मंच (=चारपाई ) या पीठपर एकदमसे वैठे या लेटे पाचित्तिय है। १९-भिक्षुको स्वामोवाला (=महल्लक) विहार वनवाते समय, दरवाज़ेमें किवाड़ोंके वंद करने और जंगलेके घुमाने या लीपनेके समय हरियालोसे अलग खड़ा हो (वैसा) करना चाहिये । उससे आगे यदि हरियालीपर खड़े होकर करे तो पाचित्तिय है। (१९) बिना छना पानी पीना आदि २०–जो कोई भिक्षु जानकर प्राणी-सहित पानीसे, तृण या मिट्टीको सींचे या सिंच- वाये, उसे पाचित्तिय है। (इति) भृत-गाम वग्ग ॥२॥ (१२) भिक्षुणियोंको उपदेश २१–जो कोई भिक्षु ( संघको ) सम्मतिके विना भिक्षुणियोंको उपदेश दे, उस पाचित्तिय है। २२–सम्मति होनेपर भो जो भिक्षु सूर्यास्तके वाद भिक्षुणियोंको उपदेश दे, उसे पाचित्तिय है। २३-जो कोई भिनु सिवाय खास अवस्थाके भिक्षुणि-याश्रममें जाकर भिक्षुणियोंको उपदेश करे तो पाचित्तिय है । विशेष अवस्था है, भिक्षुणीका रुग्ण होना।