पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६८

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$५।२४-३५ ] ५-पाचित्तिय [ २५ २४—जो कोई भिक्षु ऐसा कहे-आमिप (=भोजन वस्त्र आदि )के लिये भिक्षु, भिक्षुणियोंको उपदेश करते हैं; उसे पाचित्तिय है । (१३) भिक्षुणीके सम्बन्ध २५–जो कोई भिक्षु अज्ञातिका भित्रणीको परिवर्तन के विना (और तरहसे) चीवर दे, उसे पाचित्तिय है। २६-जो कोई भिनु अज्ञातिका भिक्षुणीके चीवरको सिये या सिलवाये, उसे पाचित्तिय होता है। -जो कोई भिक्षु खास अवस्थाको छोड़ भिक्षुणोके साथ सलाह करके, चाहे दूसरेही गाँव तक, एक रास्तेसे जाय, उसे पाचित्तिय है । विशेष अवस्था है-जब कि वह मागे काफिले (=सार्थ )का है या भय और शङ्का-पूर्ण है। २८-जो कोई भिक्षु, भिक्षुणोके साथ सलाह करके, तिचे उतारने वालीको छोड़, ( स्रोतके ) ऊपर जानेवाली या नीचे जानेवालो नाव पर चढ़े, उसे पाचित्तिय है। २९–जो कोई भिक्षु जानकर भिक्षुणोके पकवाये भोजनको, सिवाय गृहस्थके विशेष समारोहके, खाये, उस पाचित्तिय है । ३०-जो कोई भिक्षु भिक्षुणोके साथ अकेले एकान्तमें वैठे, उसे पाचित्तिय है। (इति ) भिक्खुनोवाद-वग्ग ॥३॥ (१४) भोजन सम्बन्धी ३१-नीरोग भिक्षुको (एक) निवास-स्थानमें एक ही भोजन ग्रहण करना चाहिये। इससे अधिक ग्रहण करे, उसे पाचित्तिय है। ३२-सिवाय विशेष अवस्थाओंके गण के साथ भोजन करनेमें पाचित्तिय है। विशेष अवस्थाएँ ये हैं-रोगी होना, चीवर-दान, चीवर वनाना, यात्रा, नावको यात्रा महासमय (=बुद्ध आदिके दर्शन के लिये जाना ) और श्रमणों (=सभी मतके साधुओं )के भोजनका समय । ३३-सिवाय विशेष समयके वंधानवाले भोजनके करनेमें पाचित्तिय है। विशेष समय है-रोग चीवर-दान और चोवर बनाना । ३४-घरपर जानेपर यदि (गृहस्थ ) भिक्षुको आग्रहपूर्वक पूया (= पाहुर ), संथ (= मट्टा ) यथेच्छ प्रदान करे तो इच्छा होनेपर पात्रके मेखला तक भरा ग्रहण करें । उससे अधिक ग्रहण करे, उसे पाचित्तिय है। पात्रको मेखला तक भरकर ग्रहणकर वहाँसे निकल भिक्षुओं में बाँटना चाहिये-यह उस जगह उचित है । ३५-जो कोई भिन्नु भोजन कर लेनेपर, तृप्त हो जाने पर, खादनीय या भोजनीयको अधिक खाये या भोजन करे, उसे पाचित्तिय है। १ यहाँ केवल नदियोंने ही नहीं महातीर्थ पहन (= वन्दरगाह ) से जो ताम्रलिहि या नुवर्णभूमि जाये, उसे भी आपत्ति नहीं है । सभी अस्याओम नदी सम्बन्धी आपत्तिका ही विचार किया गया है, समुद्र सम्बन्धी नहीं ( - अटकथा )। मानको अलग कर मालक रम (गोरखा )को ग्रहण करो-यह कहनेपर, यदि उस