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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६९

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भिक्खु-पातिमोक्ख [ 8५।३६-४७ ३६–जो कोई भिक्षु ( दूसरे) भिक्षुको, खा लेनेपर, तृप्त हो जानेपर, अधिक खादनीय भोजनीयको आग्रह पूर्वक दे-"अहो भिक्षु ! खा, भोजन कर"--यह सोच कि ( इसके इस ) खानेको लेनेपर (पीछे मैं आक्षेप करूँगा)-उसे पाचित्तिय है। ३७-जो कोई भिक्षु विकाल (= मध्याह्नके बाद )में खाद्य, भोज्य खाये, उस पाचित्तिय है। ३८-जो कोई भिक्षु रख छोड़े खाद्य, भोज्यको खाये, उसे पाचित्तिय है । ३९–घी, मक्खन, तेल, मधु, खाँड़, मछलो, मांस, दूध, दही ( आदि ) जो अच्छे भोजन हैं उन्हें यदि भिक्षु नीरोग होते हुए अपने लिये माँगकर खाये, उसे पाचित्तिय है। ४०–जो कोई भिक्षु जल और दन्तधावनको छोड़ विना दिये मुखमें जाने लायक आहारको ग्रहण करे, उसे पाचित्तिय है । ( इति ) भोजन वग्ग ॥४॥ ४१-जो कोई भिक्षु अचेलक (= नंगे साधू ), परिव्राजक या परिब्राजिकाको अपने हाथसे खाद्य, भोज्य देवे तो पाचित्तिय है। ४२-जो कोई भिक्षु ( दूसरे ) भिक्षुको ऐसा कहे-"यात्रो अावुस ! गाँव या कस्बेमें भिक्षाटनके लिये चलें ।" फिर उसे दिलवाकर या न दिलवाकर प्रेरित करे- "श्रावुस ! जाओ, तुम्हारे साथ मुझे बात करना या वैठना अच्छा नहीं लगता।"-दूसरा ( कारण ) न होने पर, सिर्फ इतने ही कारणसे पाचित्तिय है। ४३-जो कोई भिक्षु भोजवाले कुलमें प्रविष्ट हो वैठको (वैठक बाजी ) करता है उसे पाचित्तिय है। ४४-जो कोई स्त्रीके साथ एकान्त पर्देवाले आसनमें बैठे तो पाचित्तिय है। ४५-जो कोई भिक्षु स्त्रीके साथ अकेले, एकान्तमें बैठे उसे पाचित्तिय है। ४६–सिवाय विशेष अवस्थाके, निमंत्रित होनेपर यदि भिक्षु भोजन रहनेपर भी विद्यमान भिक्षुको विना पूछे भोजनके पहिले या पीछे गृहस्थोंके घरमें गमन करे तो पाचित्तिय है। विशेष अवस्था है-चीवर वनाने और चीवर-दान ( का समय )। ४७-नीरोग भिक्षुको पुनः प्रवारणा' और नित्य' -प्रवारणाके सिवाय चातुर्मासके भोजन आदि पदार्थ (=प्रत्यय )के दानको सेवन करना चाहिये । उससे बढ़कर यदि सेवन करे तो पाचित्तिय है। में सरसों भरका मांस का टुकड़ा हो, तो उसे छोड़नेपर प्रवारणा (=भोजनकी पूर्ति ) होती है; यदि छान लिया गया हो, तो ( लिया जा ) सकता है -यह अभय स्थविरने कहा है। मांस-रसके लिये पूछनेपर महास्थविरने-एक मुहूर्त ठहरो-कह, 'प्यालेको आवुसो !-लाओ'-कहा । यहाँ कैसा है-पूछनेपर महासुम्म स्थविरने-लानेवालेका गमन टूट गया इसलिये प्रवारणा हो गई- कहा । महापद्म स्थविरने–'यह कहाँ जाता है ? इसका गमन कैसा है ?-ऐसा ग्रहण करनेपर भी प्रवारणा होती है-यह कहकर प्रवारणा नहीं करता है'-कहा ( अट्ठकथा )। १ रोगी होनेपर पथ्यादिका दान पुन: प्रवारणा और नित्य-प्रबारणा है।