पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/७८

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T-OT .०॥ ६७५५-७५ ]. ७-सेखिय [ ३५ ५५-न जूठ लगे हाथसे पानीका बर्तन पकडूंगा- ५६-न जूठ लगे पात्रके धोवनको घरमें छोडूंगा-०। (४) कैसेको उपदेश न करना- ५७-हाथमें छाता धारण किये नीरोग (व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगा-० । ५८-हाथमें दंड लिये नीरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगा- ५९-हाथमें शस्त्र लिये नीरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगा- ६०-हाथमें आयुध लिये नीरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगा- (इति) सुरुसुरु-वग्ग ॥६॥ ६१-खड़ाऊँ पर चढ़े नीरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगा-० । ६२-जूता पहने नीरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगा- ६३–सवारीमें बैठे नीरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगा-० । ६४-शय्यामें लेटे नोरोग (व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगा- ६५–पालथी मारकर बैठे नीरोग (व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगा– । ६६-सिर लपेटे नीरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगा-०। ६७-ढंके शिरवाले नोरोग (व्यक्ति)को धर्म नहीं उपदेशृंगा-०। ६८–न ( स्वयं ) भूमिपर बैठकर आसनपर बैठे नीरोग (व्यक्ति )को धर्म उपदेशृंगा- ६९-न नीचे आसनपर बैठकर ऊँचे आसनपर बैठे नीरोग (व्यक्ति)को धर्म उपदेशृंगा- ७०-खड़े हो, बैठे नीरोग (व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगा-०। ७१-( स्वयं ) पीछे पीछे चलते आगे आगे जाते नीरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगा-1 ७२-(स्वयं ) रास्तेसे हटकर चलते हुए, रास्तेसे चलते नीरोग (व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगा- (५) पिसाब-पाखाना ७३-नीरोग रहते खड़े खड़े पिसाव-पाखाना नहीं करूँगा- ७४-नोरोग रहते हरियालीमें पिसाव-पाखाना नहीं करूँगा- ७५.-नीरोग रहते पानी में पिसाव-पाखाना नहीं करूँगा-०। (इति) पादुका वग्ग ॥७॥ आयुष्मानो ! (यह पचहत्तर) मेखिय बातें कह दी गई। प्रायुप्मानोंसे पूछता हूँ- क्या (आप लोग ) इनसे शुद्ध हैं ? दूसरो वार भी पृछता हूँ-क्या शुद्ध हैं ? तीसरी बार भी पूछता हूँ-क्या शुद्ध हैं ? अायुप्मान् लोग शुद्ध हैं, इसीलिये चुप हैं-ऐसा मैं इसे धारण करता हूँ। सेखिय समाप्त ॥७॥ O