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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/८४

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निदान [ ४१ पूछनेपर उत्तर देना होता है, वैसे हो इस प्रकारको सभामें तीन बार तक पुकारा जाता है । किन्तु, जो भिक्षुणी तीन बार पुकारनेपर याद रहते हुए भी, विद्यमान दोषको प्रकट नहीं करती, वह जान बूझकर झूठ बोलनेको दोषो होती है। आर्याभो ! भगवान्ने जान-बूझ कर झूठ बोलनेको अन्तरायिक ( =विघ्नकारक ) कर्म कहा है; इसलिये याद रखते हुए दोष युक्त भिन्नुणोको शुद्ध होनेकी कामनासे (अपनेमें) विद्यमान दोपको प्रकट करना चाहिये। ( दोषोंका ) प्रकट करना उसके लिये अच्छा होता है। आर्यायो ! निदान कह दिया गया। अब मैं आर्याओंसे पूछती हूँ-क्या (आप सब) इन (निदानमें कही बातों)से शुद्ध हैं ? दूसरी बार भी पूछती हूँ-क्या इनसे शुद्ध हैं ? तीसरी वार भो पूछती हूँ, क्या इनसे शुद्ध हैं ? आर्या परिशुद्ध ही हैं, इसीलिए चुप हैं-ऐसा मैं इसे धारण करती हूँ, इति । निदान समाप्त