पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/८५

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६१-पाराजिक (१-८) (१) मैथुन आर्याओ ! यह आठ पाराजिक धर्म कहे जाते हैं। १-जो कोई भिक्षुणी कामासक्त हो अन्ततः पशुसे भी मैथुन-धर्म सेवन करे वह पाराजिका होती है, ( भिक्षुणियोंके ) साथ न रहने लायक होती है । (२) चोरी २-जो कोई भिक्षुणी चोरी समझी जाने वाली किसी वस्तुको ग्राम या अरण्यसे बिना दिये हुए ही ग्रहण करे, जिसे (मालिकके) विना दिये हुए लेलेनेसे राजा उस व्यक्तिको चोर = स्तेन, मूर्ख, मूढ़ कहकर बाँधता, मारता या देश-निकाला देता है तो वह भिक्षुणी पाराजिका होती है, ( भिक्षुणियोंके ) साथ न रहने लायक होतो है। (३) मनुष्य-हत्या ३-जो भिक्षुणी जानकर मनुष्यको प्राणसे मारे या ( आत्म-हत्याके लिये ) शस्त्र खोज लावे, या मरनेकी तारीफ़ करे, मरनेके लिये प्रेरित करे--अरे ! स्त्री तुझे क्या (है) इस पापी दुर्जीवनसे ? (तेरे लिये ) जीनेसे मरना अच्छा है । इस प्रकारके विचारसे, इस प्रकारके चित्त-संकल्पसे अनेक प्रकारसे जो मरनेको तारीफ़ करे, या मरनेके लिये प्रेरित करे । यह भी पाराजिका होती है, ( भिक्षुणियोंके ) साथ न रहने लायक होती है । (४) दिव्य शक्तिका दावा ४-जो भिक्षुणी न विद्यमान, दिव्य-शक्ति ( = उत्तर-मनुष्य-धर्म ) = अलम्-आर्य- ज्ञान-दर्शनको अपनेमें विद्यमान बतलाती है-"ऐसा जानती हूँ, ऐसा देखती हूँ।" तब दूसरे समय पूछे जाने या न पूछे जानेपर बदनीयतीसे, या आश्रम छोड़ जानेकी इच्छासे ( कहे )–'आर्ये' ! न जानते हुए मैंने 'जानती हूँ' कहा, न देखते हुए मैंने 'देखती हूँ' कहा मैंने झूठ-तुच्छ कहा। वह पाराजिका होती है । यदि अधिमान( अभिमान)से न कहा हो। (५) कामासक्तिके कार्य ५-जो कोई भिक्षुणी कामुकी हो, कामुक पुरुषके जानुसे ऊपरके निचले शरीरको सहरावे, घर्पण करे, ग्रहण करे, छुवे, या दवानेके स्वादको ले तो वह ऊर्ध्वजानु-मंडलिका (भिक्षुणी) पाराजिका होती है । ६-जो कोई भिक्षुणी जानते हुए पाराजिक दोपवाली भिक्षुणीको न स्वयं टोके, न गणको ही सूचित करे, और जव (उक्त भिक्षुणी भिक्षुणी-वेपमें) स्थित या च्युत या निकाल दी जाये, या मतान्तरमें चली जाये तो ऐसा कहे-"आर्ये ! मैं पहले हीसे यह जानती थी-यह भगिनी ऐसी ऐसी है, किन्तु न मैंने स्वयं टोका, न (भिक्षुणी) गणको ४२ ] [ ६१।१-६