पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/८६

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६१७-८ ] १-पाराजिक [ ४३ सूचित किया। यह दोष छिपानेवाली ( भिक्षुणी ) भी पाराजिका होती है । (६) संघसे निकालेका अनुगमन ७-जो भिक्षुणी समग्र संघ द्वारा अलग किये गये धर्म-विनय-और-बुद्धोपदेशमैं आदर-रहित, प्रतिकार-रहित और अकेले भिक्षुका अनुगमन करे तो भिक्षुणियोंको उस भिक्षुणीसे यह कहना चाहिये-"आर्ये ! (= अइया ! ) यह भिक्षु सारे संघ द्वारा अलग किया गया और धर्म, विनय, तथा बुद्धोपदेशमें आदर-रहित, प्रतिकार-रहित और सहा- यता-रहित है । आर्ये ! मत ( इस ) भिक्षुका अनुगमन करो।" इस प्रकार उन भिक्षुणियों द्वारा कही जानेपर यदि वह भिक्षणी वैसे ही जिद् पकड़े रहे तो भिक्षुणियोंको उस भिक्षुणीसे तीन बार तक उसके छोड़नेके लिये कहना चाहिये । तीन बार कही जानेपर यदि वह उसे छोड़ दे तो अच्छा, यदि न छोड़े तो वह उत्क्षिप्तानुवर्तिका (= अलग किये हुएका अनुगमन करनेवाली ) पाराजिका होती है । (७) कामासक्तिसे पुरुषका स्पर्श ८-जो कोई भिक्षुणी आसक्त हो, कामातुर पुरुषके हाथ पकड़ने या चद्दरके कोनेके पकड़नेका आस्वाद ले, या ( उसके साथ ) खड़ो रहे, या भाषण करे, या संकेत की ओर जाय या पुरुषका अनुगमन करे, या छिपे ( स्थान )में प्रवेश करे, या शरीरको उसपर छोड़े, तो यह आठ वानोंवाली भिक्षुणी भी पाराजिका होती है । आर्याभो ! यह आठ पाराजिक दोष कहे गये। इनमें से किसी एकके करनेसे भिक्षुणी भिक्षणियोंके साथ वास नहीं करने पाती । जैसे पहिले वैसे ही पीछे पाराजिका होकर साथ रहने योग्य नहीं रहती । क्या (आप लोग ) इनसे शुद्ध हैं ? दूसरी बार भी पूछती हूँ-क्या शुद्ध हैं ? तीसरी बार भी पूछती हूँ-क्या शुद्ध हैं ? आर्या लोग शुद्ध हैं, इसीलिये चुप हैं--ऐसा मैं इसे धारण करती हूँ। पाराजिका समाप्त ॥ १॥