३-निस्सग्गिय-पाचित्तिय (२५-५५) आर्याओ ! यह तीस अपराध निस्सग्गिय-पाचित्तिय कहे जाते हैं। (१) पात्र १-जो भिक्षुणो पात्रोंका संचय करे तो निस्सगिय-पाचित्तिय है। २-जो भिक्षुणी असमयके चीवरको समयका चीवर मान वटवाये तो । (२) चोवर ३-जो भिक्षुणी ( दूसरी ) भिक्षुणीके साथ चीवरको बदलकर पीछे यह कहे- "हन्त ! आर्ये ! इस अपने चीवरको ले जाओ। जो तुम्हारा है वह तुम्हारा हो, और जो मेरा है वह मेरा । उसे ले आओ, और अपना ले जात्रो" (-यह कह ) छीन ले या छिन- वाले तो । (३) चीज़ोंका चेताना ( =माँगना) ४-जो भिक्षुणी एक ( चीज़ )के लिये कह कर फिर दूसरीके लिये कहे तो ५-जो भिक्षुणी एक (चीज़ )को चेताकर (=माँगकर) फिर दूसरीको चेतावे तो ६–जो भिक्षुणो दूसरे निमित्तवाले, दूसरे प्रयोजनवाले संघके सामानसे ( =के बदले ) दूसरे ( सामान )को चेतावे तो ० ७-जो भिक्षुणी दूसरे निमित्तवाले, दूसरे प्रयोजनवाले संघके माँगे हुए सामानसे दूसरे ( सामान )को चेतावे तो । -जो भिक्षुणी दूसरे निमित्तवाले, दूसरे प्रयोजनवाले महाजन (=जनसमूह ) के सामानसे दूसरे ( सामान )को चेताये तो ० । ९-जो भिक्षुणी दूसरे निमित्तवाले, दूसरे प्रयोजनवाले महाजनके माँगे हुए सामानसे दूसरे ( सामान )को चेतावे तो । १०-जो भिक्षुणी दूसरे निमित्तवाले, दूसरे प्रयोजनवाले, व्यक्ति ( विशेप ) के माँगे हुए सामानसे दूसरे ( सामान )को चेतावे तो ० । (इति) पत्तवग्ग ॥१॥ (४) अोढ़नेको चेताना ११-जाड़ेके अोढ़नेको चेताते हुए अधिकसे अधिक चार कंस ( =सोलह कार्पा- पण) मूल्यका चेताना चाहिये । यदि उससे अधिकका चेताये तो । १२–गर्मीके ओढ़नेको चेताते हुए अधिकसे अधिक ढाई कंस (=दस कार्पापण) मूल्यका चेताना चाहिये । उससे अधिक चेताये तो । ४८ ] [ ६३।१-१२
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