पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/९३

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५० । भिक्खुनी-पातिमोक्ख [ ६३।२१-२८ चीवर प्रदान करेगा। चीवरको आवश्यकता रखनेवाली भिक्षुणीको उस काम-काज करने वालेके पास जाकर दो तीन बार याद दिलानो चाहिये-श्रावुस ! मुझे चोवरको आवश्य- कता है। दो तीन वार प्रेरणा करनेपर, याद दिलानेपर यदि चोवरको प्रदान करे तो ठोक, न प्रदान करे तो चार बार, पाँच बार, अधिकसे अधिक छ वार तक ( उसके यहाँ जाकर ) चुपचाप खड़ी रहना चाहिये । चार वार, पाँच वार, अधिकसे अधिक छ बार तक चुपचाप खड़ी रहनेपर यदि चोवर प्रदान करें तो ठीक, उससे अधिक कोशिश करने पर यदि उस चीवरको प्राप्त करें तो । यदि न प्रदान करे तो जहाँसे चीवरका धन आया है, वहाँ स्वयं जाकर या दूत भेज कर ( कहना चाहिये )-आप आयुष्मानोंने जिस भिक्षुणीके लिये चोवरका धन भेजा था वह उस भिक्षुणोके कामका नहीं हुआ। आयुष्मानो ! अपने (धन ) को देखो, तुम्हारा ( वह ) धन नष्ट न हो जाय-यह वहाँ पर उचित कर्तव्य है। (इति) चीवर वग्ग ॥२॥ - (६) चाँदी-सोने रूपये-पैसेका व्यवहार २१-जो कोई भिक्षुणो सोना या रजत ( =चाँदी आदिके सिक्के )को ग्रहण करे या ग्रहण करवाये, रखे हुएका उपयोग करे, तो । २२–जो कोई भिक्षुणी नाना प्रकारके रुपयों ( रुपिय सिका )का व्यवहार करे तो । (७) क्रय-विक्रय २३-जो कोई भिक्षुणी नाना प्रकारके खरोदने बेचनेके कामको करे; तो ० । (८) पात्र २४-जो कोई भिक्षुणी पाँचसे कम ( जगह ) टाँके पात्रसे दूसरे नये पात्रको वदले तो ० । उस भिक्षुणीको वह पात्र भिक्षुणी-परिषद्को दे देना चाहिये और जो (पात्र ) भिक्षुणी-परिपद्का अंतिम पात्र है उस भिक्षुणीको (यह कहकर) देना चाहिये- भिक्षुणी ! यह तेरे लिये पात्र है । जब तक न टूटे तव तक (इसे ) धारण करना।- यह यहाँ उचित (प्रतिकार ) है। (८) भैषज्य २५-भिक्षुणीको घो, मक्खन, तेल, मधु, खाँड़ ( आदि ) रोगी भिक्षुणियोंके सेवन करने लायक़ पथ्य ( = भैपज्य )को ग्रहण कर अधिकसे अधिक सप्ताह भर रखकर भोग कर लेना चाहिये । इसका अतिक्रमण करनेपर । (१०) चीवर २६–जो कोई भिक्षुणी ( दूसरो ) भिक्षुणीको स्वयं चीवर देकर फिर कुपित और नाराज़ हो, छीने या लिनवाये उसे । २७-जो कोई भिक्षुणी स्वयं सूत माँगकर कोलो (= जुलाहा)से चीवर बुनवाये . उसको । २८-उसी भिक्षुणीके लिये अज्ञातक गृहस्थ या गृहस्थिनी कोलीसे चीवर बुनवायें और वह भिक्षुणी प्रदान करनेसे पहिले ही कोलोके पास जाकर ( यह कहकर ) चीवरमें