पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/९४

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६३।२९-३० ] ३-निस्सग्गिय-पाचित्तिय [ ५१ हेरफेर कराये-आवुस ! यह चोवर मेरे लिये वुना जा रहा है। इसे लंबा चौड़ा बनाओ, घना, अच्छी तरह तना, खूब अच्छी तरह बुना, अच्छी तरह मला हुआ और अच्छी तरह छटा हुआ बनाओ, तो हम भी आयुष्मानोंको कुछ दे देंगी; और नहीं तो कुछ भिक्षा मेंसे हो; तो । २९-कार्तिककी त्रैमासी पूर्णिमाके आनेसे दस दिन पहिले ही यदि भिक्षुणीको फाजिल ( पाँच से अधिक ) चीवर प्राप्त हो तो फाजिल समझते हुए भिक्षुणीको उसे प्राप्त करना चाहिये । ग्रहणकर चीवरकाल तक रखना चाहिये । उसके बाद यदि रखे तो। (११) संघके लाभसे भाँजी सारना ३०-जो कोई भिन्नुणो, संघके लिये प्राप्त वस्तु ( =लाभ )को अपने लिये परिवर्तन करा ले तो । (इति) जातरूप बरग ॥३॥ आर्याश्रो ! तीस निस्सग्गिय-पाचित्तिय दोप कह दिये गये। आर्याओंसे पूछती -क्या ( आप लोग ) इनसे शुद्ध हैं ? दूसरी बार भी पूछती हूँ-क्या शुद्ध हैं ? तोसरी वार भी पूछती हूँ-क्या शुद्ध हैं ? आर्या लोग शुद्ध हैं, इसीलिये चुप हैं-ऐसा मैं इसे धारण करती हूँ। निस्सगिय-पाचित्तिय समाप्त ॥३॥