पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/९५

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४-पाचित्तिय (५६-२२१) आर्याओ! यह एकसौ छियासठ पाचित्तिय दोप कहे जाते हैं- (१) लहसुनका खाना १-जो भिक्षुणी लहसुन खाये, उसे पाचित्तिय है । (२) कामासक्तिके कार्य २-जो भिक्षुणी गुह्यस्थानके लोमको वनवावे, उसे ० । ३-तलघातक में पाचित्तिय है। ४-जतुमहक में पाचित्तिय है ५-(स्त्री-इन्द्रिय )की जलसे शुद्धि करते वक्त, भिक्षुणोको अविकसे अधिक दो अँगुलियोंके दो पोर तक लेना चाहिये; उसका अतिक्रमण करनेपर पाचित्तिय है। (३) भिक्षुकी सेवा ६-जो भिक्षुणी, भोजन करते भिक्षुको जलसे या पंखेसे सेवा करे, उसे पाचित्तिय है। (४) कच्चा अनाज ७-जो भिक्षुणी कच्चे अनाजको माँगकर या मँगवाकर, भूनकर या भुनवाकर, कूटकर या कुटवाकर, पकाकर या पकवाकर खाये उसे । (५) पेसाब-पाखाना-सम्बन्धी -जो भिक्षुणी, पेसाब या पाखानेको, कूड़े या जूठेको दीवारके पोछे या प्राकारके पीछे फेंके, उसे । ९-जो भिक्षुणी पेसाव या पाखानेको, कूड़े या जूठेको हरियालीपर फेंके, उसे ० । (६) नाच गान १०-जो भिक्षुणी नृत्य, गोत, वाद्यको देखने जाये, उसे । (इति) लसुन-वग्ग ॥१॥ (9) पुरुपके साथ ११-जो भिक्षुणी, प्रदीपरहित रात्रिके अंधकारमें अकेले पुरुपके साथ अकेली खड़ो रहे, या वातचीत करे, उसे ० । १ कृत्रिम मधुन । २ लाखका बना मैथुन-साधन। ५२ ] [ ६४१-११