पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/९६

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, ६४।१२-२७ ] ४-पाचित्तिय [ ५३ १२--जो भिक्षुणी, आड़के स्थानमें अकेले पुरुपके साथ अकेली खड़ी रहे, या बातचीत करे, उसे । १३–जो भिक्षुणी चौड़ेमें अकेले पुरुषके साथ अकेली खड़ी रहे, या वातचीत करे, उसे । १४-जो भिक्षुणी, सड़कपर, या व्यूह ( = एक निकास ) या चौरस्तेपर अकेले पुरुषके साथ अकेली खड़ी रहे या बातचीत करे, या कानमें बात करे; या दूसरी भिक्षुणीको (वैसा करनेके लिये ) प्रेरित करे, उसे । (८) गृहस्थोंके घरमें जाना, बैठना १५–जो भिक्षुणी, भोजन (-काल ) के पूर्व गृहस्थोंके घरों में जा आसनपर वैठे, (गृह-) स्वामियोंको विना पूछे चली आये, उसे ० । १६-जो भिक्षुणी, भोजन (-काल )के पश्चात् गृहस्थोंके घरोंमें जा, स्वामियोंको विना पूछे आसन पर बैठे या लेटे, उसे । १७-जो भिक्षुणी, मध्यान्हके वाद ( = विकालमें ) गृहस्थोंके घरोंमें जा, स्वामियों को विना पूछे विस्तरा विछाकर या विछवाकर बैठे या लेटे, उसे ० । (९) भिक्षुणीको दिक् करना १८-जो भिक्षुणी, ( वातको ) उलटा समझ उलटा पकड़कर दूसरी (भिक्षुणी) को दिक करे, उसे । (१०) सरापना १९-जो भिक्षुणी, अपनेको या दूसरेको नरक या ब्रह्मचर्यको ले कर शाप दे, उसे ०। ११) देह पीटकर रोना २०--जो भिक्षुणी, अपने (शरीर )को पोट पीटकर रोये, उसे । (इति) रत्तन्धकार-वग्ग ॥२॥ (१२) स्नान २१-जो भिक्षुणी, नंगी होकर नहाये । २२-वनवाते समय भिक्षुणीको प्रमाणके अनुसार नहानेकी साड़ी वनवानी चाहिये । प्रमाण यह है-बुद्धके वित्तेसे लम्बाई चार वित्ता, चौड़ाई दो वित्ता । इसका अतिक्रमण करे, तो उसे । (१३) चीवर २६-जो भिक्षणी, (दुसरी ) भिक्षुणीके चोवरको न सीने न सिलवाने देकर, पीछे कोई वाधा न होनेपर भी वह न सिये न सिलवानेके लिये प्रयत्न करे, तो चार पाँच दिन ( की देर )को छोड़, उसे । २४-जो भिक्षणो, पाँचवें दिन अवश्य मंघारी धारण करने ( के नियम )का फातिमामण कर. उसे । २५-लो भिक्षुणी, विना पृट (दृसरेके ) चोवरको धारण कर, उमे । २६-जो भिन्नुमो. ( भिन्नणी-) गाग, चीवर-लाभमें विन डाले. जमे । २७-जो निदरणी, धर्मानुसार चोवरवं दैटवारे में बाधा डाले, से।