भिक्खुनी-पातिमोक्ख [ ६४१२८-४० २८-जो भिक्षुणी, श्रमण ( = भिक्षु )के चीवरको (किसी ) गृही, परिव्राजक था परिव्राजिकाको दे, उसे । २९-जो भिक्षुणी, चीवरको कम अाशासे चीवरकालको अवधि' को बिता दे, उसे । के लेने ( ३०-जो भिक्षुणी ( भिक्षुणी-संघ द्वारा) धर्मानुसार किये जाते कठिन (चीवर ) उद्धार )में रुकावट डाले, उसे । (इति) नग्ग वग्ग ।।३।। (१४) साथ लेटना ३१-यदि दो भिक्षुणियाँ एक चारपाई पर लेटे तो उन्हें । ३२-यदि दो भिक्षुणियाँ एक विछौने-अोढ़नेमें लेटे तो उन्हें । (१५) हैरान करना ३३–जो भिक्षुणी जानबूझकर (दूसरी ) भिक्षुणीको हैरान कर, उसे ० । (१६) रोगी शिष्याकी सेवा न करना ३४-जो भिक्षुणी शिष्या ( =सहजीविनी )को रोगी देख न सेवा करे न सेवा करानेके लिये उद्योग करे, उसे । (१७) उपाश्रय दे निकालना ३५-जो भिक्षुणी (दूसरी) भिक्षुणीको आश्रय (= उपाश्रय ) देकर पीछे कुपित और असंतुष्ट हो निकालदे या निकलवादे, उसे ० । (१८) पुरुष संसर्ग ३६-जो भिक्षुणी गृहस्थ या गृहस्थके पुत्रसे संसर्ग करके रहे उस भिक्षुणीको (दूसरो) भिक्षुणियाँ इस प्रकार कहें-"आर्ये ! गृहस्थ या गृहस्थ के पुत्रसे संसर्ग करके मत रह । भगिनियोंका संघ तो एकान्तशीलता और विवेकका प्रशंसक है।" इस प्रकार उन भिक्षुणियों द्वारा कहे जानेपर यदि वह जिद न छोड़े तो भिक्षुरिणयाँ उसे तीन बार तक समझायें। यदि तीन बार तक समझानेपर वह अपनी जिद छोड़ दे तो यह उसके लिये अच्छा है; यदि न छोड़े, तो उसे (१९) विचरना ३७–जो भिक्षुणी भयपूर्ण, अशान्तिपूर्ण (स्व-)देशमें साथियोंके विना अकेली विचरण करे, उसे । ३८-जो भिक्षुणी भयपूर्ण, अशान्तिपूर्ण वाह्यदेशमें साथियोंके बिना ( अकेली) विचरण करे, उसे । ३९-जो भिक्षुणी वर्षा कालके भीतर विचरण करे, उसे । ४०-जो भिक्षुणी वर्पा-वास करके कमसेकम पाँच छ योजन भी विचरण करनेके लिये न चली जाय, उसे ० । (इति ) तुवट्ठ-वग्ग ॥४॥
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