पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/९८

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६४।४१-५५ ] ४-पाचित्तिय [ ५५ (२०) तमाशा देखना ४१-जो भिक्षुणी राज-प्रासाद, चित्र-शाला, आराम, उद्यान, या पुष्करिणीको देखने जाये, उसे । (२१) कुर्सी पलंगका इस्तेमाल ४२-जो भिक्षुणी कुर्सी या पलंगका उपयोग करे, उसे । (२२) सूत कातना ४३-जो भिक्षुणी सूत काते, उसे ० । (२३) गृहस्थोंकेसे काम-काज करना ४४–जो भिक्षुणी गृहस्थकेसे काम-काजको करे, उसे । ( २४ ) झगड़ा न निबटाना ४५-जो भिक्षुणी ( दूसरी ) भिक्षुणीके यह कहनेपर-"आओ आर्ये ! इस झगड़े को निबटा दो", "अच्छा"-कह पीछे कोई हर्ज न होनेपर भी (उस झगड़ेको) न निवटावे, न निवटाने के लिये प्रयत्न करे, तो उसे । (२५) भोजन देना ४६-जो भिक्षुणी गृहस्थ, परिव्राजक या परिव्राजिकाको अपने हाथसे खाद्य, भोज्य दे, उन । (२६) आश्रमको चीवरमें बेपर्वाही ४७-जो भिक्षुणी ऋतुकालके चीवरका उपयोगकर (उसे) धोकर न रखदे, उसे ४८--जो भिक्षुणी ऋतुकालके चीवरका उपयोग करके विना धोये रख चारिका ( = विचरण = रामत )के लिये चली जाय, उसे । (२७) भूठी विद्याओंका पढना पढ़ाना ४९-जो कोई भिक्षणी भूठी, विद्याओंको सीखे पढ़े, उसे । ५०-जो भिक्षुणी झूठो विद्याओंको पढ़ाये, उसे ० । (इति) चित्तागार-बग्ग ॥५॥ (२८) भिन्तु वाले अाराममें प्रवेश ५१-जो भिक्षुणी जानते हुए जिस पाराममें भिक्षु हों उसमें विना पूछे प्रवेश पारं. उसं० । (२०) निन्दना ५ः-जो भिक्षुणो भिक्षुको दुर्वचन कहे या निंदा कर, उसे । ५६-जो भिजणी क्रुद्ध हो ( भिक्षुणी-) गणको निन्दा करे, उसे । (३०) तृप्तिके बाद हाना ५४-जो भिहरी निमंत्रित हो ग़म होजानेपर खाद्य-भोज्यको (फिर) खाये, उसे ० । (३१) गृहस्थोंमे डाह जी निजी (गृहन्ध- कुल मत्सर करे, उमे। -