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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१०२

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छोटे जंतु के उपकार के लिये भी अपने सैंकड़ों प्राण देने को उद्यत थे। केवल धर्म और परोपकार के नाम की डौंडी पीटना आजकल की व्यर्थ बकवास है।

मैं गौतम वुद्ध सा धर्मात्मा चाहता हूँ जिनको ईश्वर और जीवात्मा पर विश्वास ही न था, जिन्होंने कभी उसकी बात ही छेड़ी, अपितु जो पूरे संशयवादी थे और तिस पर भी जो सबके न लिये प्राण देने को तैयार रहते थे। वे आजन्म लोगों की भलाई के लिये काम करते रहे, सबकी भलाई का चिंतने करते रहे। उनके जीवनचरित्रकार ने बहुत ही ठीक कहा है कि उनका जन्म बहुतों की भलाई के लिये ही हुआ था। बहुतों के लिये उनका जन्म परम हितकारक था। वे जंगल में अपने मोक्ष के लिये नहीं गए थे। उनको इसलिये वहाँ जान पड़ा था कि संसार में आग लगी थी और वे उसे बुझाने के लिये उपाय ढूँढ़ने निकले थे। संसार में इतना दुःख क्यों है, यही प्रश्न वे आजन्म विचारते रहे। क्या आप समझते हैं कि हम भगवान् बुद्धदेव से धर्मात्मा हैं?

मनुष्य जितना स्वार्थी होता है, उतना ही वह पापी भी होता है। यही दशा जातियों की भी है। जो जाति अपने स्वार्थ में बँधी है, वहीं संसार में सबसे अधिक अत्याचारी और दुष्ट है। संसार में ऐसा कोई धर्म न होगा जो द्वैत से उतना राग रखता हो, जितना अरब के आचार्य्य (पैगंबर) का धर्म है। और न संसार में वैसा रक्तपात किसी धर्म ने किया है और औरों