रिक पुरुष के यही लक्षण हैं। इनके अतिरिक्त गूढ़ तत्वान्वेषी
लोग हैं जिनका काम सदा अपनी आत्मा के अन्वेषण में,
चित्त की वृत्तियों के जानने में, आभ्यंतर कर्म कैसे होते हैं,
आंतरिक शक्ति कैसे बढ़ाई जाय, उन पर अधिकार कैसे प्राप्त
हो इत्यादि बातों की छानबीन में लगा रहना है। यहीं गूढ़
तत्वान्वेषियों के लक्षण हैं। इनके अतिरिक्त दार्शनिक लोग हैं जो
प्रत्येक पदार्थ की जाँच किया करते हैं और सारे मानव विज्ञान
के परे अपनी बुद्धि से पहुँचने के प्रयत्न में लगे रहते हैं।
अब यदि कोई ऐसा धर्म हो जिसमें अधिकतर लोग आ सकें, तो उसमें सबके लिये यथोचित सामग्री होनी चाहिए। जिसमें यह बात नहीं होती, उसी से सब संप्रदाय के लोग किनारा करके अलग हो जाते हैं। मान लीजिए कि आप ऐसे संप्रादयवालों के पास जाते हैं। जिसका उपदेश प्रेम आर भक्ति का है, वे नाचते हैं, गाते हैं, रोते हैं और भक्ति का उप- देश करते हैं। पर ज्यों ही आप उनसे यह कहिए कि भाई आप जो कुछ करते हैं, सब ठीक है; पर मुझे इससे कुछ दृढ़ और ठोस पदार्थ चाहिए, कुछ युक्ति, प्रमाण और दार्शनिक बातें हों। मैं तो सब बातों को क्रमशः और युक्तियुक्त रूप से जानना चाहता हूँ। पर वे आपकी बात सुनते ही कह देंगे कि निकल जाइए; और यदि उनका बस चले तो आपको दूसरें लोक में भी पहुँचाने में कसर न रखेंगे। परिणाम यह होता है कि उस संप्रदाय में केवल वैकारिक प्रकृतिवालों को ही ठिकाना