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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१६१

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किसी और साधन की अपेक्षा है जो हमें इसके बाहर ले जाय; और इस साधन का नाम अवभास है। अतः सहज ज्ञान, तर्क और अवभास ज्ञान के ये तीन साधन ठहरे। सहज ज्ञान पशुओं का साधन है, तर्क मनुष्यों का और अवभास देवताओं का। पर सारे मनुष्यों में कम वा अधिक उन्नत रूप में इन तीनों ज्ञान के साधनों के बीज मिलते हैं। इन मानसिक साधनों को बढ़ाने के लिये बीज का वहाँ होना नितांत आवश्यक है। और यह भी स्मरण रखना चाहिए कि एक साधन दूसरे से प्रोन्नत होकर निकलते हैं, अतः वे विरोधी नहीं हैं। यह तर्क ही है जो प्रोन्नत होकर अवभास बन जाता है। अतः अवभास तर्क का विरोधी नहीं है, अपितु पूरक है। जिन बातों का ज्ञान तर्क द्वारा नहीं हो सकता, उनका ज्ञान अवभास से होता है। अव- भास से तर्क का घात नहीं होता। वृद्ध पुरुष बच्चे का विरोधी नहीं है, अपितु पूरक है। अतः यह बात स्मरण रखिए कि सबसे बड़ी भूल लोग यह करते हैं कि छोटे साधन को बड़ा साधन मान बैठते हैं। कितनी बार बहुधा सहज ज्ञान को लोग अवभास समझ लेते हैं और इसका परिणाम यह होता है कि लोग भविष्यद्वक्ता होने की व्यर्थ की डींग मारने लगते हैं। एक मूर्ख वा आधा पागल यह सोच सकता है कि मुझे मस्तिष्क का विकार क्या हुआ, अवभास मिलने लगा; और वह चाहता है कि लोग मेरे अनुयायी हो जायँ। सबसे विरुद्ध और अयुक्त बातें जिनका संसार में उपदेश हुआ है, वह केवल