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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१६२

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ऐसे ही विकृत मस्तिष्कों की सामान्य ज्ञान-जनित ध्वनि मात्र है जिसे वे अवभास के नाम से प्रख्यात करने का उद्योग करते रहे हैं।

आप्तोपदेश की पहली पहचान यह है कि वह तर्क के विरुद्ध न हो और आप देखते हैं कि इन योगों का आधार ऐसा ही है। हम राजयोग ही को लेते हैं जो आध्यात्मिक वा मानसिक योग अर्थात् मिलने की मानसिक रीति है। यह बड़ा गहन विषय है और मैं आपके सामने योग के इस मुख्य विचार को रखे देता हूँ। हमारे पास ज्ञान की प्राप्ति का एक ही मार्ग है। साधारण मनुष्य से लेकर बड़े से बड़े योगी तक को इसी मार्ग का अवलं बन करना पड़ता है और यह मार्ग चित्त की वृत्ति की एकाग्रता है। रासायनिक जो प्रयोगशाला में काम करते हैं, अपनी सारी शक्तियों को अपने चित्त में एकाग्र करते हैं, सबको एक केंद्र पर लाते और उनको द्रव्यों पर लगाते हैं; और द्रव्यों का विश्लेषण हो जाता है और उनको उसका बोध हो जाता है। इसी प्रकार ज्योतिषी भी चित्त को एकाग्र करके एक केंद्र पर लाता है; और उसे अपने दूरवीक्षण यंत्र द्वारा पदार्थों पर डालता है; ग्रह नक्षत्र अपनी कक्षा में फिरते हुए अपना रहस्य उस पर प्रकट कर देते हैं। यही अवस्था सबकी है। अध्यापक चित्त की एकाग्रता से ही अध्ययन कराता है, विद्यार्थी चित्त की एकाग्रता से ही पढ़ता है और दूसरे जो ज्ञान प्राप्त करने के लिये काम करते हैं, सब चित्त की वृत्ति को एकाग्र करके