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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१६५

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करते हैं; और फल यह होता है कि मुझे दुःख होता है। ऐसी बातों से मनुष्य का मन काम करने से हट जाता है। इससे बहुत सा काम बिगड़ जाता है और मनुष्य की शक्ति नष्ट हो जाती है। यह क्या है? यही दुःख का भय है। कर्मयोग हमें यह बतलाता है कि कर्म का विचार कैसे उदासीन रहकर किया जाय, बिना इस विचार के कि किसकी सहायता की जाती है और क्यों की जाती है। कर्मयोगी इसलिये काम करता है कि कर्म करना उसका धर्म है, इसलिये कि वह समझता है कि कर्म करना अच्छी बात है। उसे इससे अधिक कुछ भी प्रयोजन नहीं है। उसका पक्ष है कि संसार में देना ही धर्म है। वह पाने की आशा नहीं करता। वह जानता है कि मैं त्याग रहा हूँ; दे रहा हूँ। वह उस कर्म का बदला नहीं चाहता। इसी कारण वह दुःख के पंजे से बचा रहता है। दुःख जब कभी होता है, तब राग से ही उप्पन्न होता है।

अब भक्ति योग की ओर देखिए। यह वैकारिक लोगों के लिये है जिन्हें भक्त कहते हैं। वे ईश्वर की भक्ति करना चाहते हैं और उसपर उनको भरोसा रहता है और विविध भाँति के उपचार पुष्प, धूप, दीप, आसन, मूर्ति आदि का व्यवहार करते हैं। क्या आप यह कह सकते हैं कि वे भूले हैं। एक बात मैं आपसे कहता हूँ। यह आपके लिये विशेषतः इस देश में स्मरण रखने की बात है कि संसार में बड़े बड़े महात्मा लोग उन्हीं धर्मों में उत्पन्न हुए हैं, जिनमें सर्वोत्कृष्ट पुराण और कर्मकांड का