पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१७७

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देखिए। कैसी सुगमता से यह फूट सकती है। पर बड़े से बड़े सूर्य्य की सत्ता इसी लिये है कि आप उसे अपनी आँखों से देखते हैं। संसार की सत्ता क्यों है? इसी लिये कि आपकी आँखें उसकी सत्ता को बताती हैं। इस रहस्य पर विचार कीजिए। इसी बेचारी छोटी सी आँख को तीव्र प्रकाश वा सूई फोड़ सकती है। पर फिर भी नाश का प्रचंड यंत्र, बड़े बड़े प्रचंड विप्लव, अद्भुत सत्ताएँ, करोड़ों सूर्य्य, चंद्र, ग्रह, नक्षत्रादि को अपनी सत्ता प्रमाणित करने के लिये केवल इन्हीं दो छोटी छोटी वस्तुओं की साक्षी की अपेक्षा रहती है। जब वे कहती हैं कि संसार है, तब हम यह मानते हैं कि हाँ है। यही दशा हसारी और इंद्रियों की भी है।

यह क्या? निर्बलता कहाँ है? बलवान् कौन है? कौन बड़ा, कौन छोटा है? इस परस्पर सापेक्ष जगत् में कौन ऊँचा है, कौन नीचा? यहाँ तो समष्टि को भी अपनी सत्ता के लिये एक कारण की अपेक्षा है। कौन बड़ा कौन छोटा, यह विचार भाग गया। क्योंकि न तो कोई छोटा है न कोई बड़ा। सब के भीतर वही अनंत समुद्र लहरें मार रहा है। उन सब की सत्यता वही अनंत सत्ता है। जो कुछ ऊपर देख पड़ता है, वह केवल अनंत ही अनंत है। इसी प्रकार जो कुछ आप देखते और सम- झते हैं, वह भी अनंत है। बालू का एक एक कण, एक एक विचार, एक एक आत्मा, जो कुछ है, सब अनंत ही है। यही हमारी सत्ता है।