उसे अपनी आत्मा में देखता है, उसी के लिये शाश्वत सुख है, दूसरे के लिये नहीं। वहाँ न सूर्य्य का प्रकाश पहुँचता है, न चंद्र का प्रकाश, न तारों के प्रकाश पहूँचते हैं, न बिजली की चमक पहुँच सकती है; फिर इस आग की तो बात ही क्या है। उसी के प्रकाश से सब प्रकाशित हैं, उसी के प्रकाश से यह सब चमकते हैं। जब सब इच्छाएँ जो मन के दुःख का कारण हैं, जाती रहती हैं, तभी मर्त्य अमर हो जाता है और ब्रह्म को प्राप्त होता है। जब हृदय की गाँठ खुल जाती है और सारे संशय मिट जाते हैं, तभी मर्त्य अमृत होते हैं। यही मार्ग है यह ज्ञान हमको सुखदायक हो; यह हमारा भोग हो; इससे हमें बल मिले; यह हमारी शक्ति बन जाय; हम परस्पर घृणा न करें; सबको शांति मिले।
आपको वेदांत-दर्शन में इसी प्रकार की बातें मिलेंगी। पहले तो हमें यह देख पड़ता है कि इसमें वह विचार मिलता है जो संसार के सारे विचारों से विलक्षण है। वेदों के पुराने भागों में वही बात थी, अर्थात् बाहरी जगत की खोज। कुछ पुरानी पुस्तकों में यह प्रश्न उठाया गया था कि आदि में था क्या। उस समय न सत् था न असत् था, जब अंधकार अंध- कार को ढंके हुए था। फिर “किसने इसे सिरजा?” फिर खोज आरंभ हुई। फिर तो देवताओं और नाना प्रकार की बातें चलीं और अंत को हम देखते हैं कि उन लोगों ने निराश होकर उन बातों को भी छोड़ दिया। उनके समय बाह्य जगत्