पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२०

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रहने दो। मुझे सोने दो, हिम में पड़े सोने में बड़ा ही आनंद मिलता है। इस प्रकार पड़े पड़े हम मर ही जाते हैं। ठीक ऐसी ही दशा हमारी प्रकृति की है। ठीक ऐसा ही हम अपने जीवन में कर रहे हैं। पैर से सिर तक हिममय होते जा रहे हैं; फिर भी हम सोना ही चाहते हैं। अतः आप को चाहिए कि आप आदर्श की ओर बढ़ने का प्रयास करें। अब यदि कोई आवे और आपसे कहे कि हम आपको ऐसा आदर्श बतलावेंगे जो आपकी अवस्था के अनुकूल है और ऐसे धर्म की शिक्षा दे जिसका आदर्श सर्वोच्च न हो, तो आप कान न दीजिए। मेरी समझ में तो वह धर्म अशक्य वा असाध्य है। पर यदि कोई ऐसे धर्म की शिक्षा दे जिसका आदर्श सर्वोच्च हो, तो मैं उसे स्वीकार करने को उद्यत हूँ। ऐसे लोगों से सावधान रहो जो अपने विषय की असारता और निर्बलता के लिये बातें बनाया करते हैं। यदि कोई इस प्रकार हमें उपदेश देने आवे तो हम उस उपदेश पर चलने से कभी उन्नति नहीं कर सकते। हम तो संसार में विषय के बंधनों में पड़कर जड़ीभूत हो गए हैं। मैंने ऐसी बहुत बातें देखी हैं, मुझे संसार का कुछ अनुभव हो चुका है; और मेरा तो वह देश है जहाँ धर्म कुकुरमुत्ते की भाँति नित्य उपजते रहते हैं―प्रति वर्ष नए नए धर्म निकला करते हैं। और मुझे तो एक विलक्षण बात यह देख पड़ी है कि वही धर्म उन्नति करते हैं जिनमें सांसारिक जीवन और पारमार्थिक जीवन एक नहीं बतलाया जाता, जिनमें पंचभौतिक पुरुष और