ड़वावेगा।” दूसरों की अपरिचित प्रथा को समझना किसी जाति के लिये कठिन है; तो फिर युरोपवालों के लिये यहूदियों की उस अज्ञात प्रथा को समझना कितना कठिन था जिसकी बात शताब्दियों के परिवर्तन होने पर यूनानियों, रोमनों और अन्य जातियों से होकर उन तक पहुँँची थी। इसमें संदेह नहीं कि उन सारी पौराणिक गाथाओं और कल्पनाभों के भीतर ढके हुए होने पर भी ईसाई धर्म के भाव को लोगों ने बहुत कम जान पाया है और निस्संदेह उसे लोगों ने आजकल का बाजारू धर्म बना लिया है।
अब हम फिर अपने आशय पर आते हैं। लगभग सभी धर्मों में आत्मा की नित्यता की शिक्षा है; और यह भी बात मिलती है कि उसका प्रकाश मंद पड़ गया और उसे पुनः ईश्वर के ज्ञान से उसकी पहली पवित्रता प्राप्त हो जायगी। इन भिन्न भिन्न धर्मों में ईश्वर के विषय में क्या विचार हैं? ईश्वर के संबंध में जो प्रारंभिक विचार है वह बड़ा ही भोंडा है―अव्यक्त है। प्राचीन जातियों के सूर्य्य, पृथ्वी, वायु, जल आदि भिन्न भिन्न देवता थे। यहूदियों में हमें बहुतेरे ऐसे ही देवता मिलते हैं जो परस्पर लड़ते भिड़ते रहते थे। फिर हमें इलोहिम मिलता है जिसकी पूजा यहूदियों और बाबुलवालों में होती थी। फिर हम देखते हैं कि उनमें एक की प्रधानता हो चली थी पर भिन्न भिन्न जत्थों के भाव अलग अलग थे। सब यही समझते थे कि हमारा ईश्वर सबसे बड़ा है। वे लोग इसे