पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
[ २४७ ]

कहते हैं। अतः अणुवाद सर्वतंत्र सिद्धांत नहीं हो सकता। सांख्य के अनुसार प्रकृति सर्वगत है। उसी प्रकृति में सारे जगत् का कारण है। कारण क्या है? व्यक्तावस्था की सूक्ष्म वा अव्यक्तावस्था वा ईषद् व्यक्तावस्था―वही व्यक्त का सूक्ष्म से सूक्ष्म होना। नाश किसका नाम है? कारण में लय होने का। आपके पास एक ठीकरा है। उसे पटक दीजिए, चूर चूर हो जायगा। उसका नाश हो जायगा। इसका आशय यही है कि कारण अपना रूप धारण कर लेगा। वह पदार्थ जिससे वह वर्तन बना था, अपने वास्तविक रूप को धारण कर लेगा। इस भाव के अतिरिक्त नाश का यह आशय कि शून्य हो जाना, हो ही नहीं सकता। पदार्थों का शून्य हो जाना नितांत असंभव है। आधुनिक भौतिक विज्ञान से यह सिद्ध हो सकता है कि कपिल ने जो नाश का यह अर्थ किया कि ‘नाशः कारणलयः’ ठीक है। नाश का अर्थ है सूक्ष्म होकर कारण में लय हो जाना। आप जानते हैं कि द्रव्य की नित्यता को प्रयोगशाला में किस प्रकार प्रत्यक्ष करके दिखलाते हैं। आजकल ज्ञान के युग में यदि कोई यह कहे कि प्रकृति वा पुरुष वा आत्मा शून्य हो सकती है तो उस पर लोग हँसेंगे। केवल अशिक्षित और मूर्ख लोग ऐसी बातें करते हैं। यह आश्चर्य्य की बात है कि आधु- निक विज्ञान से उन बातों की सिद्धि होती है जिनकी शिक्षा प्राचीनों ने दी थी। वह अवश्य वैसा ही है और यही उसकी सत्यता का प्रमाण है। उन लोगों ने मन को आधार मानकर