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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२६७

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अनुभव का पूर्व के अनुभवों से मिलान करने को ज्ञान कहते हैं और यह इसके लिये एक बड़ा प्रमाण है कि बिना पूर्व अनु- भव के ज्ञान नहीं। यदि आपमें अनुभव नहीं है और आपका चित्त संस्कार-रहित है तो आपको कोई ज्ञान हो ही नहीं सकता; क्योंकि ज्ञान तभी होता है जब भीतर मिलाने के लिये कुछ संस्कार होता है। नए संस्कार को मिलाने के लिये भीतर संस्कारों का संग्रह होना चाहिए। मान लीजिए, कोई लड़का ऐसा उत्पन्न हो जिसके पास संचित संस्कार नहीं; तो उसको ज्ञान होना असंभव है। अतः बच्चे के पास पहले से संचित ज्ञान था जो बढ़ता जा रहा है। इस तक का निरसन करने के लिये आप कोई मार्ग बतलाइए। यह गणित की बात है। कितने यूरोपीय दर्शनों में भी यह बात मानी गई है कि बिना पूर्व के ज्ञान भांडार के ज्ञान हो ही नहीं सकता। उन लोगों ने यह विचार निर्धारित किया है कि बालक ज्ञान लेकर उत्पन्न होता है। युरोप के विद्वानों का कथन है कि बच्चे का पूर्व ज्ञान उसके पूर्व जन्मों के कारण नहीं है, अपितु उसके माता पिता के अनु- भव का ही फल है; यह दाय स्वरूप है जो पिता पितामह आदि से आता है। उन्हें बहुत ही शीघ्र यह जान पड़ेगा कि यह विचार नितांत मिथ्या है। जर्मन के कई दार्शनिक इस दाय के सिद्धांत का घोर खंडन कर रहे हैं। दाय की बात है तो अच्छी, पर अपर्य्याप्त वा अधूरी है। इससे केवल भौतिक अंश का काम चलता है। आप इससे उस संसर्ग का जिसमें हम हैं, क्या