पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२७२

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प्रकृति से मिलता नहीं। वह महत् नहीं है, अपितु असंग है। मैं साक्षी हूँ और मेरे साक्षी होने से प्रकृति जड़ और चेतन सबको उत्पन्न करती है।

पर प्रकृति में यह चेतनता क्या है? हम देखते हैं कि महत् ही चेतनता है, जिसे चित् कहते हैं। इस चेतनता का कारण पुरुष ही है, पुरुष का यह धर्म है। यह वह है जो अनिर्वचनीय है, पर सारे ज्ञान का कारण वही है। पुरुष चेतनता नहीं है, चेतनता संयोगज है। पर चेतनता में जो प्रकाश और अच्छापन है, वह पुरुष ही का है। चेतनता पुरुष में है, पर पुरुष चेतन नहीं है, ज्ञाता नहीं है; पुरुष में चित्त प्रकृति के कारण है जो चारों ओर दिखाई देती है। विश्व में जो आनंद और प्रकाश है, वह पुरुष के कारण है। पर वह है संयोगज। पुरुष के साथ प्रकृति भी मिली रहती है। जहाँ जहाँ कुछ आनंद है, वहाँ वहाँ वह उसी अमृतत्व की चिनगारी वा अंश है जिसे ईश्वर कहते हैं। पुरुष विश्व का प्रधान आकर्षण करनेवाला है। वह विश्व से अलग भले ही हो, पर समस्त विश्व को आकर्षण करनेवाला है। आप देखते हैं कि लोग स्वर्ण की चिंता में भटकते हैं। कारण यही है कि उसमें पुरुष का एक अंश है, उसमें बहुत सी मैले भले ही क्यों न मिली हो। जब कोई अपने बाल-बच्चों से प्रेम करता है, तब उसे कौन आकर्षित करता है? उनकी आड़ मैं पुरुष ही आकर्षित करता है। वहाँ वह मैल से श्रावृत्त है। दूसरा कौन आकर्षण कर सकता है? इस जड़ जगत् में