से यह प्रश्न करते हैं कि प्रकृति को उत्पन्न किसने किया? सांख्य कहता है कि पुरुष और प्रकृति नित्य और सर्वगत या व्यापक हैं और असंख्य पुरुष,हैं। हमें इस सिद्धांत का खंडन करना चाहिए और इससे अच्छा समाधान करना चाहिए। इस प्रकार हम अद्वैतवाद पर पहुँच जायँगे। हमारी पहली आपत्ति यह है कि दो अनंत हो कैसे सकते हैं। फिर हमारा यह कथन है कि सांख्य का ज्ञान ठीक नहीं है। हमें उससे ठीक समाधान पाने की आशा न करनी चाहिए। हमें तो यह देखना चाहिए कि वेदांती लोग किस प्रकार इस कठिनता को दूर करके पक्का समाधान करते हैं। पर फिर भी यश सांख्य ही के भाग्य में है। जब मकान बन जाय, तब उस पर चूना कर देना बहुत ही सुगम है।
हम आपको सांख्य शास्त्र का सिद्धांत संक्षेप रूप में बतला चुके हैं। अब आज के व्याख्यान में हम यह दिखलावेंगे कि उसकी न्यूनता कहाँ कहाँ है और वेदांत दर्शन से उसकी पूर्ति किस प्रकार होती है। आपको स्मरण होगा कि सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति ही इन सारी अभिव्यक्तियों का कारण है जिन्हें हम ज्ञान, बुद्धि, चित्त, राग-द्वेष, वेदना, रूप, रस, गंध, स्पर्श तथा द्रव्यादि कहते हैं। सब की उत्पत्ति प्रकृति से है।