पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/३०९

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यह नहीं है कि आप ब्रह्म बन जाते हैं। आप सचमुच वही हैं। यह नहीं कि आप पूर्ण ब्रह्म बन रहे हैं; आप पूर्ण ब्रह्म ही हैं। और जब आप यह समझते हैं कि आप नहीं है, तभी भ्रम हैं। यह भ्रम कि आप अमुक वा अमुकी हैं, किसी और भ्रम से चला जायगा। यही अभ्यास है। आग भाग को खायगी; (तब तो) आप एक भ्रम को दूसरे भ्रम से मिटा सकते हैं। एक बादल आवेगा, दूसरे को ठेल देगा; फिर दोनों चले जायँगे। फिर यह अभ्यास ही क्या है? हमें सदा मन में यह समझे रहना चाहिए कि हम मुक्त होने नहीं जा रहे हैं, पर यह कि हम मुक्त हैं ही। यहाँ तक कि सब प्रकार के विचार कि हम बद्ध हैं, भ्रम ही हैं। प्रत्येक विचार कि हम सुखी हैं, हम दुःखी हैं, बड़ा भ्रम है। फिर दूसरा भ्रम आता है कि हमें परिश्रम करना है, कर्म करना है, पूजा करना है और मुक्ति के लिये प्रयत्न करना है; और यह पहले भ्रम का पीछा करेगा और फिर दोनों रुक जायँगे।

मुसलामन लोमड़ी को बहुत ही अपवित्र समझते हैं और हिंदू भी ऐसा ही समझते हैं। यदि कुत्ता खाने को छू ले तो लोग उसे फेंक देते हैं और खाते नहीं। किसी मुसलमान के घर एक लोमड़ी घुस गई और थाली में का खाना जूठा करके भाग गई। बेचारा निर्धन था। उसने अपने लिये पैसा लगाकर खाना पकाया था। खाना जूठा हो गया। वह खाय तो कैसे खाय। वह दौड़ा हुआ मुल्ला के पास गया और बोला―