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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/३१०

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मौलवी साहब, आज मेरे घर एक लोमड़ी घुस आई और थाली में से रोटी लेकर भाग गई। कहिए, मैं अब क्या करूँ। मैंने बहुत पैसा लगाकर खाना पकाया और खाने ही जाता था कि लोमड़ी आई और उसे जूठा कर गई। मुल्ला ने बहुत देर तक सोचा और फिर कहने लगा कि इसका सहज उपाय यही है कि एक कुत्ता बुला लाओ और उसी थाली से एक टुकड़ा कुत्ते को खिला दो; क्योंकि कुत्ता लोमड़ी का सहज बैरी है। वह खाना जो लोमड़ी से बचा है और जो कुत्ते को खिलाने से बचे, तुम खा लो; फिर वह पवित्र है। हम वैसी ही व्यवस्था में पड़े हैं। यह एक भ्रम की बात है कि हम अपूर्ण हैं; और हम दूसरे भ्रम में पड़ रहे हैं कि पूर्ण होने का प्रयत्न करने जाते हैं। फिर तो एक को दूसरे के पीछे दौड़ाया जाता है; जैसे काँटा निकालने के लिये काँटा काम में लाया जाता है और फिर दोनों फेंक दिए जाते हैं। ऐसे लोग भी हैं जिनके लिये तत्त्व- मसि वाक्य का श्रवण मात्र पर्याप्त ज्ञान है। चुटकी बजाने में यह विश्व विलीन हो जाता है और सञ्चा स्वरूप प्रकट हो जाता है। पर औरों को इस बंधन के भ्रम को मिटाने के लिए कठिन प्रयत्न करना पड़ता है।

पहली बात यह है कि कर्मयोगी होने का पात्र कौन है? जिसमें यह सब गुण हों। पहला गुण तो यह है कि उसमें कर्म के फल और ऐहिक तथा पारलौकिक सुखों का त्याग हो। यदि आप विश्व के कर्ता हैं, तो आप जिस वस्तु की इच्छा करें, आपको