पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/३१९

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लोक में उत्पन्न होता है, इत्यादि। यह सब भ्रम है, मिथ्या है। न स्वर्ग है न नरक है, न यह लोक है, न परलोक है; सब भ्रम है। इनकी कहीं सत्ता ही नहीं है, ये हैं ही नहीं। बच्चे से बहुत से भूतों की कहानियाँ कहिए, और उसे कहिए कि संध्या समय गली में जाओ। वहाँ एक ठूँठ है। वह बच्चे को देख पड़ेगा। उसे वही भूत के रूप में उसे पकड़ने के लिये हाथ पसारे हुए देख पड़ेगा। मान लीजिए कि गली की ओर से कोई कामी पुरुष अपनी प्रेमिका से मिलने के लिये आ रहा है। वही ठूँठ उसे स्त्री के रूप में भासित होगा। चौकीदार को वही ठूँठ चोर के रूप में भासमान होगा। चोर को वही चौकीदार देख पड़ेगा। पर वास्तव में है क्या? है तो ठूँठ ही न जो भिन्न रूपों में भास- मान हुआ? ठूँठ सत्य है; और शेष जो देख पड़े, मन के भिन्न भिन्न विकार थे जो भासमान हुए। एक ही सत्ता है, वही आत्मा, वही ब्रह्म; न कहीं कोई आता है न कहीं जाता है। जब कोई मनुष्य अज्ञानी होता है, तब वह स्वर्ग वा किसी और लोक के जाने की कामना रखता है और आजन्म उसकी भावना करता रहता है। जब वह मर जाता है, तब संसार के स्वप्न का अंत हो जाता है और उसे यही लोक स्वर्ग भासमान होता है। यहाँ उसे देवता देख पड़ते हैं, उड़ते हुए देवदूत वा फरिश्ते दिखाई पड़ते हैं। जैसी भावना होती है, वैसा ही उसे देख पड़ता है। यदि कोई मनुष्य आजन्म अपने पितरों को देखने की कामना रखता है तो उसे ब्रह्मा से लेकर उसके पिता