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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/३२१

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सबसे अधिक प्रसन्नता हुई, वह ऐसी थी कि जिसे आप अत्यंत असंबद्ध समझते हैं, अर्थात् जिसमें कोई लगाव वा संबद्ध न था। एक भाव आया और फिर उसके स्थान पर दूसरा उचकक आया; दोनों नितांत असंबद्ध, कुछ लगाव नहीं। जब आप बच्चे थे, आप ने उस संबंध को अद्भुत समझ रखा था। अतः लेखक ने अपने बचपन के विचारों का संग्रह कर दिया जो बचपन की दशा में उसके लिये नितांत संबद्ध थे; और यह पुस्तक बच्चों के लिये लिख दी। बाकी सारी पुस्तकें जो लोग इस विचार से लिख हैं कि बच्चों में वे अपने भावों को भर दें और वे मनुष्यों की भाँति उसे ग्रहण करे, व्यर्थ हैं। हम भी तो बड़े बच्चे ही हैं। संसार वैसा ही असंबद्ध वस्तु है। Alice in Wonder- land में किसी प्रकार का संबंध ही नहीं है। जब हम एक ही बात अनेक बार परंपरा विशेष के अनुसार होती हुए देखते हैं तो हम उसे कारण और कार्य्य का नाम देते हैं और कहने लगते हैं कि यही बात फिर होगी। जब यह स्वप्न जाता रहता है तब दूसरा स्वप्न आता है जो ठीक इसी की भाँति असं- बद्ध होता है। जब तक हम स्वप्न देखते रहते हैं तब तक उसकी बातें हमें संबद्ध देख पड़ती हैं। स्वप्न की अवस्था में हमें उसकी असंबद्धता का विचार भी नहीं होता; उसकी असंबद्धता जापाने पर ही प्रतीत होती है। जब हम संसार-रूपी स्वप्न से जागते हैं और इसे तथ्य के साथ तुलना करते हैं, तब यह हमें नितांत असंबद्ध और मिथ्या जान पड़ता है। असंबद्धता की