पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/४०

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उत्पत्तियों की खोज में है; और इन कथाओं से हमें अनुमान होता है कि यह कैसे दिनों दिन व्यावहारिक हो रहा था। उन सारे पदार्थों में सत्य ही निकलता हुआ दिखलाया गया है जिनके साथ ब्रह्मचारी का संपर्क था। अग्नि जिसकी उपा- सना वह करता, ब्रह्म था; पृथ्वी ब्रह्म का अंश थी और इसी प्रकार औरों को भी समझ लीजिए।

दूसरी कथा उपकोशल कामलायन की है। वह सत्यकाम का अंतेवासी था। वह उसके पास वेदाध्ययन के लिये गया था और उसके यहाँ कुछ काल रहा था। सत्यकाम एक बार यात्रा करने गया। ब्रह्मचारी बड़ा ही दुखी हुआ। उसकी आचारणी ने आकर उससे कहा कि उपकोशल, तुम खाते क्यों नहीं? बालक ने कहा―मुझे बड़ा खेद है; मैं न खाऊँगा। फिर उस अग्नि से जिसकी वह परिचर्य्या कर रहा था, यह शब्द निकला कि ‘यह आत्मा ब्रह्म है, आकाश ब्रह्म है और आनंद ब्रह्म है। ब्रह्म को जानो’। बालक ने उत्तर दिया कि मैं यह तो जानता हूँ कि आत्मा ब्रह्म है; पर आकाश ब्रह्म है और आनंद ब्रह्म है, यह मैं नहीं जानता हूँ। तब अग्नि ने उसे समझाया कि आकाश और आनंद एक ही पदार्थ अर्थात् चिदाकाश के बोधक हैं जो हमारे अंतःकरण में है। एवं उसने उसे यह शिक्षा दी कि ब्रह्म ही आत्मा है और ब्रह्म ही अंतःकरणगत आकाश है। अग्नि ने कहा कि पृथ्वी, अन्न, अग्नि और आकाश जिनकी हम उपासना करते हैं, ब्रह्म के रूप हैं। वह पुरुष जो आदित्य में है, वह मैं हूँ।