जो उसे जानता है और उसका ध्यान करता है, वह निष्पाप हो
जाता है, दीर्घायु होता है और सुखी होता है। वह जो सब
दिशाओं में, चंद्रमा, नक्षत्र और जल में रहता है, वह मैं ही हूँ।
वह जो इस आत्मा में, आकाश में, अंतरिक्ष में और विद्युत् में
रहता है, वह मैं हूँ। यहाँ पर भी हमें वही व्यावहारिक धर्म का
भाव देख पड़ता है। इस कथा में उन्हीं पदार्थों का जिन्हें वे
पूजते थे, जैसे अग्नि, सूर्य्य, चंद्र इत्यादि और शब्द का जिसे वे
सुना करते थे, उल्लेख हुआ है। उन्हीं के द्वारा उच्च भावों
का स्पष्टीकरण कराया गया है और उन्हीं से वे प्राप्त हुए हैं,
यह दिखलाया गया है। वेदांत का यही सच्चा कर्म-कांड है।
इससे संसार का नाश नहीं होता अपितु उसका स्पष्टीकरण
होता है। यह पुरुष को मिटाता नहीं अपितु उसके अर्थ को
समझा देता है। यह व्यक्तता को नष्ट नहीं करता किंतु उसे
बोधगम्य कर देता है और वास्तविक व्यक्तता क्या है, इसे
दिखला देता है। यह यह नहीं दरसाता कि संसार असार है और
है ही नहीं, अपितु यह कहता है कि ‘इस संसार को जानो कि
यह क्या है, जिसमें यह तुम्हें हानि न पहुँचावे।’ उस वाणी ने
सत्यकाम से यह नहीं कहा कि अग्नि जिसकी वह पूजा कर
रहा था वा सूर्य्य, चंद्र, विद्युत् आदि मिथ्या थे; अपितु उसने
यह कहा कि वही आत्मा जो सूर्य्य, चंद्र, विद्युत्, अग्नि, पृथ्वी
में है, उसमें है; और सब की दशा सत्यकाम की आँखों के सामने
मानो फिर गई। वही अग्नि जो भौतिक अग्नि थी, जिसमें वह
पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/४१
दिखावट
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
[ ३५ ]