आहुतियाँ दिया करता था, फिर तो कुछ और हो गया और
ब्रह्मरूप हो गया। पृथ्वी का रूप बदल गया, आत्मा का रूप
बदल गया, सूर्य्य, चंद्र, तारे और विद्युत् सबके रूप बदल गए
और देवस्वरूप बन गए। उनका वास्तविक स्वरूप प्रकट हो गया।
वेदांत का उद्देश है सबमें ब्रह्म को देखना, सबको उनके वास्तविक
स्वरूप में देखना, ऐसा न देखना जैसे कि वे दिखाई पड़ते हैं।
फिर उपनिषद् में एक और उपदेश है। वह यह है कि ‘वह जो आँखों में होकर चमकता है, ब्रह्म है।’ वही सौम्य है* वही दिव्य है; वही सारे लोकों में प्रकाशमान है। भाष्यकार कहते हैं कि यहाँ आँख की ज्योति से अभिप्राय उस अद्भुत तेज से है जो शुद्ध पुरुष को उपलब्ध होता है। यह कहा जाता है कि जब मनुष्य शुद्ध वा पापरहित हो जाता है तो उसकी आँख में एक ज्योति चमकने लगती है और वह ज्योति उस आत्मा की है जो भीतर और बाहर सर्वत्र व्याप्त है। यह वही ज्योति है जो ग्रहों, तारों और सूय्यों में चमकती है।
अब मैं आपके सामने उपनिषद् के अन्य सिद्धांतों का वर्णन करता हूँ जो जन्म-मरणादि के संबंध में हैं। संभव है कि यह आपको रोचक प्रतीत हो। श्वेतकेतु पंचाल के राजा के पास गया और राजा ने उससे पूछा―‘क्या तुम यह जानते हो कि लोग मर कर कहाँ जाते हैं? क्या तुम जानते हो कि वे कैसे
* य एषोऽक्षिणी पुरुषो दृश्यते एष आत्मा हो वाच एतदष्टतमयमेतदब्रह्म इति―छा० ८ । ७ । ४