पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
[ ३७ ]


लौटते हैं? क्या तुम यह जानते हो कि यह लोक मर क्यों नहीं जाता है?’ बालक ने उत्तर दिया कि मैं नहीं जानता हूँ। फिर वह अपने पिता के पास गया और उससे वही प्रश्न किए। पिता ने कहा, मैं भी नहीं जानता; और दोनों राजा के पास गए। राजा ने कहा कि अब तक यह विद्या ब्राह्मणों को ज्ञात नहीं थी। राजा लोग ही इसे जानते थे, इसीसे वे जगत् के शासक थे। वह राजा के पास कुछ काल तक रह गया और अंत को राजा ने कहा―‘अच्छा मैं तुम्हें बताता हूँ। हे गौतम, दूसरा लोक अग्नि है, आदित्य समिधा है, राशियाँ धूम हैं, दिन ज्वाला है और चंद्रमा अंगारा है। इस अग्नि में देवता लोग श्रद्धा की आहुति देते हैं और उससे सोम राजा उत्पन्न होता है।’ इसी प्रकार वह कहता जाता है―‘तुम्हें उस भौतिक अग्नि में आहुति देने की आवश्यकता नहीं। सारा संसार वही अग्नि है। यह आहुति नित्य पड़ती रहती है, पूजा नित्य होती रहती है। देवता, गंधर्व सब पूजा करते रहते हैं। मनुष्य का यह शरीर अग्नि का सबसे बड़ा प्रतीक है। यहाँ पर भी हमें वही बात देख पड़ती है। आदर्श व्यावहारिक होता जा रहा है, सब में ब्रह्म ही देखा जाता है। इन सब कथाओं में जो सिद्धांत भरा है, वह यह है कि कल्पित प्रतीक अच्छे भले ही हों, वे उपकारी भी हों, पर फिर भी हमारे कल्पित प्रतीकों से कहीं अच्छे प्राकृतिक प्रतीक हैं। आप एक मूर्ति बना सकते हैं और उसके द्वारा ईश्वर की पूजा करते हैं और वह अच्छा भी हो सकता