पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
[ ३९ ]

हूँ। आप समझ सकें तो समझिए। “जब मनुष्य मरता है तब यदि वह तप से शुद्ध है और ज्ञान को प्राप्त कर चुका है, वह प्रकाश को प्राप्त होता है। प्रकाश से दिन को, दिन से शुक्ल पक्ष को, शुक्ल पक्ष से उत्तरायण को, उत्तरायण से संवत्सर को, संवत्सर से आदित्य को, आदित्य से चंद्रमा को, चंद्रमा से विद्युत् को और तब वह विद्युत् लोक को पहुँचता है। तब उसे दिव्य पुरुष मिलता है और वह उसे ब्रह्मलोक को पहुँँचाता है।” इसे देवयान कहते हैं। जब ऋषि और ज्ञानी लोग मरते हैं, तब वे इसी मार्ग से होकर जाते हैं और लौटकर नहीं आते। इस पक्ष और वर्ष का अभिप्राय क्या है, यह किसी की समझ में नहीं आता। सब अपनी अपनी सी कहते हैं। सूर्य्य, चंद्र- लोकादि में जाने और विद्युत् लोक पहुँचकर वहाँ उस दिव्य पुरुष के मिलने का और क्या आशय है, यह किसी के ध्यान में नहीं आता। हिंदुओं में एक यह विश्वास है कि चंद्र- लोक में पितर रहते हैं; और हम यह भी देखते हैं कि चंद्रलोक से जीवन आता है। जिन लोगों को ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ है पर जो अपने जीवन में शुभ कर्मों का अनुष्ठान कर चुके हैं, वे मरने पर पहले धूम को प्राप्त होते हैं, फिर रात्रि को, फिर कृष्णपक्ष को, फिर दक्षिणायन को, फिर वे पितर लोक में जाते, हैं, फिर आकाश में, फिर चंद्रमा में पहुँचते हैं। वहाँ वे देव- ताओं के अन्न बनते हैं और पुनः देवयोनि को प्राप्त होकर उनके पुण्य कर्मों का जब तक क्षय नहीं होता, सुख भोगते हैं।